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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और उपाय है ही नहीं। अहिंसा अपना काम इतनी खामोशीसे करती रहती है कि उसके प्रभावका प्रायः पता ही नहीं चलता, लेकिन उसका काम निश्चतरूपसे जारी रहता है। हमारे चारों ओर निरन्तर चलनेवाली विनाश-लीलाके बीच प्रकृतिकी एक यही प्रक्रिया है जो रचनात्मक है। ऐसा मानना मैं अन्धविश्वास समझता हूँ कि वह मात्र व्यक्तिगत जीवनमें ही फलप्रद हो सकती है। निजी अथवा सार्वजनिक जीवनका ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जिसमें इस शक्तिका उपयोग किया जा सकता हो। किन्तु अपने अहंको पूर्णतः शून्य बनाये बिना ऐसी अहिंसाकी साधना असम्भव है।

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

२८०. पत्र: आर० शर्माको

साबरमती
१४ नवम्बर, १९२४

प्रिय भाई,

मुझे निम्नलिखित बातोंके बारेमें, जिन दिनों असहयोग पूरे जोरपर था, उन दिनोंके और आजके आँकड़े चाहिए। ये आँकड़े यथासम्भव शीघ्र भेज दें तो कृपा हो।

खिताब छोड़ने वालोंकी संख्या।

सरकारी स्कूल और कालेज छोड़नेवाले लड़के-लड़कियोंकी संख्या।

वकालत छोड़नेवाले लोगोंकी संख्या।

प्रयोग में लाये जा रहे चरखोंकी संख्या।

हाथ-कते सूतसे बने कपड़े की मात्रा।

हाथ करघोंकी संख्या।

राष्ट्रीय स्कूलों तथा कालेजोंकी संख्या और उनमें पढ़नेवाले लड़के और लड़कियों की तादाद।

अस्पृश्योंके बीच किस प्रकारका और कितना काम किया गया।

नशाबन्दी ( शराब और अफीम ) के लिए किस प्रकारका और कितना काम किया गया, इसका विवरण।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

अंग्रेजी पत्र ( एस० एन० ११७२३ ) की फोटो-नकलसे।