पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/३८१

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२८१. पत्र: काका कालेलकरको

कार्तिक बदी ३ [ १४ नवम्बर, १९२४ ][१]

भाईश्री काका,

शिक्षांकके लिए लेख[२] लिखनेके बाद बच्चोंकी शिक्षाके बारेमें मेरा मन और सक्रिय हो उठा है। हम आश्रमके बच्चोंके लिए यह प्रयोग क्यों न शुरू करें? यानी कि अगर उसमें बताया विचार आपके गले उतरा हो तो बच्चा घड़ेको घड़ेके रूपमें पहचानता तो है, लेकिन वह उसका चित्र नहीं खींचता। उसी तरह वह अक्षरको पढ़े तो लेकिन लिखे नहीं। कोई बात पढ़नेसे पहले वह उसे सुनता है और जैसा सुनता है वैसा ही उच्चारण करता है--बोलता है। लक्ष्मी, रसिक वगैरह बच्चोंको लिखना छुड़वाकर पहले चित्र बनाना ही क्यों न सिखाया जाये? काफी-कुछ उन्हें जबानी ही क्यों न सिखाया जाये? अभी तो वे हाथका उपयोग चित्र खींचनेमें ही करें। इसके लिए शिक्षकों को चित्र बनानेके मूल तत्त्व जान लेने चाहिए। अब मैं गहरा जाने लगा हूँ, इसलिए यहीं रुक जाता हूँ। अभी तो इतनेपर ही विचार कीजिए। विशेष मिलनेपर।

बापूके आशीर्वाद

[ गुजरातीसे ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई


२८२. पत्र: चक्रवर्ती राजगोपालाचारीको

१४/१५ नवम्बर, १९२४

प्रिय राजगोपालाचारी,


स्वामीका तार आया है कि आपने समझौतेकी जो तीव्र आलोचना की है, उसे वह मेरे पास भेज रहा है। मेरी यही कामना है कि यह आपके व्यथित हृदयके लिए मरहमका काम करे। मुझे या तो लोगोंसे अपना रास्ता स्वीकार कराना है या फिर उन्हींका रास्ता स्वीकार कर लेना है। यदि मुझसे दोनोंमें से एक भी नहीं बना तो फिर मुझे सार्वजनिक जीवनसे अलग हो जाना है। बारडोलीमें मैंने अहिंसाके क्षेत्रमें एक दिशामें सबसे साहसपूर्ण प्रयोग किया था। यह समझौता दूसरी दिशामें सबसे

  1. साधन-सूत्र के अनुसार।
  2. देखिए "एक रास्ता", २०-१०-१९२४।