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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

साहसपूर्ण प्रयोग है। बारडोलीके बारेमें मुझे पश्चात्ताप नहीं, क्योंकि मुझमें अपने कदम वापस लेनेका साहस था और यह जो कदम उठाया है, आशा है, उसके बारेमें पश्चात्ताप करनेका और भी कम कारण होगा। 'यंग इंडिया' में प्रकाशित मेरे लेखसे आपको शायद थोड़ी शान्ति मिले। बड़ा अच्छा होता, अगर आप बम्बई आते। लेकिन इसपर मैं जोर नहीं दूँगा।

'करेन्ट थॉट' में[१] 'हिस्ट्री ऑफ सत्याग्रह इन साउथ आफ्रिका' का वालजी गोविन्दजी देसाई कृत अनुवाद छपा है। कृपया उसे पढ़कर उसकी आलोचना वी० जी० देसाईको या मुझे भेज दें। वी० जी० देसाईका पता होगा: शाही बाग, अहमदाबाद। आशा है, आप मजेमें होंगे। खुश रहो, मस्त रहो; गमको पास मत फटकने दो।

आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]


महादेव देसाई की हस्तलिखित डायरी से।

सौजन्य: नारायण देसाई


२८३. पत्र: जीवतराम बी० कृपलानीको

१५ नवम्बर, १९२४

प्रिय प्रोफेसर,

तुमने जो बमगोला फेंका, उसका रुख किशोरलालने मेरी ओर कर दिया है। मुझपर तो उन कारणोंका कोई असर नहीं हुआ, जिन कारणोंसे प्रेरित होकर भाई किशोरलाल और दूसरोंकी समझमें, सचमुच, तुमने वह बम फेंका था। किशोरलालने अब पत्रका वह हिस्सा वापस ले लिया है और क्षमा माँग ली है। यह अध्याय तो यहीं समाप्त होता है। जो भी हो, मैं तुम्हें इतनी अच्छी तरह जानता हूँ कि तुमको कभी गलत समझ ही नहीं सकता। बहुत-सी बातें हमारी इच्छा के विरुद्ध, अनजाने ही हमपर असर डालती हैं। इसलिए लिखित शब्दोंकी तहमें जाकर लिखनेवालेके मनको पढ़नेकी कोशिश करना हमेशा खतरनाक होता है। इसलिए तुमने अपने इस्तीफेके जो कारण बताये, उन्हें मैं अंशतः स्वीकार किये लेता हूँ और इसीलिए तुमसे यह कहना चाहता हूँ कि इस्तीफा देनेसे पहले तुम्हें मुझको लिखना चाहिए था और बैंकरसे बातचीत कर लेनी चाहिए थी। बनारसके बारेमें तो मैं बिलकुल भूल ही गया था, क्योंकि मेरा खयाल था, वहाँकी सभी जिम्मेदारियोंसे बैंकरने मुझे मुक्त कर दिया है। तुम्हारा पत्र मैंने उन्हींको भेज दिया है और मैं चाहता हूँ कि तुम उनसे मिलकर सारी परिस्थितिपर बातचीत कर लो। फिर इसका मतलब यही हुआ कि

  1. एस० गणेशन द्वारा प्रकाशित एक मासिक पत्रिका।