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पत्र: स्वामीजीको

बनारसके सम्बन्धमें तुम जिस चिन्तासे परेशान हो, वह प्रशासनिक नहीं, बल्कि आर्थिक जिम्मेदारीकी चिन्ता है।

कीकी बहनसे कह दो कि मैं उसे बराबर याद करता हूँ। जल्दी ही उससे मिलनेकी उम्मीद रखता हूँ और आशा करता हूँ कि अगर उसे शरीरसे पहले की अपेक्षा ज्यादा मजबूत और अच्छा न पाऊँ तो कमसे -कम सदाकी भाँति प्रसन्न अवश्य देखूँगा।

तुम्हारा,
बापू

[ अंग्रेजी से ]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरी से।

सौजन्य: नारायण देसाई

२८४. पत्र: स्वामीजीको

कार्तिक वदी ४ [ १५ नवम्बर, १९२४ ]

स्वामीजी,

आपके प्रश्न मीले हैं।

१. तपबलका आर्थिक उपयोग करनेसे उसका नाश होता है।

२. यज्ञ बल पानेके लिये कीया जाता है। ऐसी स्थितिमें बाह्य रक्षाकी आवश्यकता रहती है।

३. रामके कार्योंके वर्णनमें मुझे ऐसा प्रतीत नहिं हुआ कि उन्होंने शरीरबलसे विजय पाया।

४. कृष्णकी कथामें बहोत सी बातें केवल रूपक हैं [ उनसे ] कृष्णका आत्मबल दृष्टिगोचर होता है न [ कि ] शरीरबल।

आज भी हम देखते हैं कि पृथ्वीमें शरीरबलसे युक्तिबल बढ़ता है। युक्तिबल और शरीरबल आत्मबलके सामने तुच्छ सा मालुम होता है।

आपका,
मोहनदास गांधी

महादेव देसाई की हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई