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सन्देश: तमिलनाड परिषद्, तिरुवन्नामलईको

वहाँ जा पहुँचता। तब मुझे लगता था कि मैं कुछ उपयोगी सेवा कर सकता हूँ और अपने मित्रोंके सहयोगसे हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच फिरसे मेल-जोल कायम करानेमें अपना तुच्छ योगदान कर सकता हूँ। लेकिन जब कोहाट जानेपर रोक लगा दी गई, तो मुझे लगा कि रावलपिंडी जानेसे कुछ नहीं बनेगा! मुझे मालूम था कि बहुत-से मित्र शरणार्थियोंकी सहायतामें लगे हुए हैं और पण्डित मालवीयजी उनका खास खयाल रख रहे हैं। जैसा ऊपर बताया है, शरणार्थियोंने मुझसे आनेका अनुरोध किया है और उनके इस अनुरोधका खयाल करके मैं रावलपिंडी जाऊँगा भी; लेकिन मुझे लगता है कि वहाँ जाकर भी मैं उन्हें सांत्वना देनेके अलावा शायद और कोई सेवा नहीं कर पाऊँगा। लेकिन, मैं शरणार्थियोंसे इस तथ्यकी ओर ध्यान देनेको कहूँगा कि कोहाटका सवाल सारे भारतका सवाल है। भारतके हिन्दू और मुसलमान, दोनोंकी ही इसके उचित, सम्मानपूर्ण और सही समाधानमें बड़ी दिलचस्पी है। इसलिए वे जो भी समाधान स्वीकार करें वह स्थानीय हितोंको देखते हुए नहीं, बल्कि राष्ट्रीय हितोंको ध्यानमें रखकर स्वीकार करें। उनकी बुद्धिमानी इसीमें होगी कि कोई भी समझौता स्वीकार करनेसे पहले वे हिन्दू और मुसलमान नेताओंकी सहमति ले लें, मैं तो सरकारको यही सलाह देना चाहूँगा। यह देखकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई कि उन्होंने समझौते की उन शर्तोंको, जो कहते हैं, उनके सामने रखी गई थी, अस्वीकार कर दिया। सरकारने घोषणा की है कि वह एकताके पक्षमें है। वह जो कुछ करें, उसमें अगर वह जनता को भी शरीक रखे और दोनों सम्प्रदायोंके लोगोंके सामने समझौते की जो भी शर्तें रखे, उनपर जनताकी भी स्वीकृति ले ले तो यह उसकी सदाशयताका ही परिचायक होगा।

[ अंग्रेजीसे ]
न्यू इंडिया, १७-११-१९२४

२८७. सन्देश : तमिलनाड परिषद्, तिरुवन्नामलईको[१]

[१७ नवम्बर, १९२४ से पूर्व]

आशा है, यह परिषद् स्वराज्यवादियों और अपनी निजी हैसियतसे मेरे बीच हुए समझौतेको समझेगी और उसकी खूबियाँ पहचानेगी। अहिंसाको ठीकसे समझ लेनेसे इस समझौतेकी कुंजी प्राप्त हो जायेगी। इस समझौतेका असहयोगपर कोई असर नहीं पड़ता। जो भी हो, मुझे उम्मीद है कि परिषद् के परिणामस्वरूप खद्दरका उपयोग बढ़ेगा।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, १९-११-१९२४
  1. यह परिषद् १७ नवम्बरको तिरुवन्नामलईमें हुई थी। उसमें समझौतेका समर्थन किया गया था और खद्दर पहननेपर खास जोर दिया गया था।