पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/३८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२८८. पत्र: सतीशचन्द्र मुखर्जीको

१७ नवम्बर, १९२४

प्रिय सतीश बाबू,

आपके तारका उत्तर दे दिया है। कृष्टोदासको क्या करना चाहिए, इसका सबसे अच्छा निर्णय तो आप ही कर सकते हैं। वचन देनेके बारेमें मेरे क्या विचार हैं, आप जानते हैं। कृष्टोदासने बिलकुल साफ कहा था कि वह १८ तारीख या उससे पहले लौट आयेगा। यदि उसका आना किसी भी तरह सम्भव था तो उसे अपना वादा पूरा करना चाहिए था। लेकिन, मैं स्वीकार करता हूँ कि जो वादा वह आपके जरिये या आपकी सहमतिसे न करे, वह वादा उसपर अन्तिम रूपसे बन्धनकारी नहीं हो सकता। गुरु और शिष्य के सम्बन्धोंके बारेमें मेरी मान्यता बहुत ऊँची है। इसलिए आपको जो तार भेजा, उसे भेजनेमें मुझे तनिक भी हिचकिचाहट नहीं हुई। मैं जानता हूँ कि कृष्टोदासका कल्याण आँख मूँदकर आपकी आज्ञाका पालन करनेमें ही है। इसलिए मैं तो आप दोनोंके बीच पड़नेका साहस नहीं कर सकता। आप भेजेंगे तो वह आयेगा तो अवश्य ही; और रही मेरी बात, सो मैं तो चाहता ही हूँ कि वह आ जाये। मेरा प्रायः निश्चित मत है कि उसकी वर्तमान मनःस्थितिका कारण जरूरतसे ज्यादा संवेदनशीलता ही है।

मैं २० तारीखको बम्बई पहुँच रहा हूँ, शायद २३ तक वहाँ रहूँगा, महीने के अन्ततक साबरमतीमें रहूँगा और ३ या ४ दिसम्बरको रावलपिंडी पहुँचूँगा।

आपके भेजे तेलका इस्तेमाल मैं रोज करता हूँ और उसके साथ ही आपको याद करता हूँ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

अंग्रेजी पत्र (जी० एन० ५६०६) की फोटो-नकलसे।