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२९१. पत्र: कनिकाके राजाको

स्थायी पता: साबरमती,
१८ नवम्बर, १९२४

प्रिय राजा साहब,

आपके २५ अक्तूबर, १९२४ के पत्रके[१] लिए और आपकी शुभकामनाओंके लिए धन्यवाद। मेरे पास जो कागजात हैं उनके आधारपर मेरे सचिवने जो टिप्पणी तैयार की थी उसका उत्तर मैंने पढ़ लिया है। इस समस्यासे निपटनेका सबसे सन्तोषजनक तरीका यही है कि मैं या मेरी तरफसे कोई आदमी राज्यमें जाकर निजी तौरपर तहकीकात करे, ताकि मैं उस विषयपर अधिकारपूर्ण कुछ कह या लिख सकूँ। मैं इसी आशयका पत्र लिखनेवाला था कि तभी मुझे श्री एन्ड्रयूजसे यह चीज मिली। आप शायद जानते होंगे कि उपवासके समय से ही वे 'यंग इंडिया' के सम्पादनमें मेरी सहायता कर रहे हैं। कतरनको प्रकाशनार्थ भेजा गया था लेकिन श्री एन्ड्रयूज मुझे दिखाये बगैर उसे छापने को तैयार नहीं थे। उसे पढ़नेपर मैंने तय किया कि छापनेसे पहले उसको आपके पास भेज दूँ। इसी बीच मैंने देखा कि अन्य अखबारोंने उस खबरको पहले ही छाप दिया है। यदि आप अन्यथा न मानें तो मैं श्री एन्ड्रयूजको आपके पास भेजना चाहूँगा ताकि वे सब चीजें अपनी आँखोंसे देख सकें। वे कहते हैं कि आपको वे भली-भाँति जानते हैं और उन्होंने कृपापूर्वक जाना भी स्वीकार कर लिया है। यदि श्री एन्ड्रयूज वहाँ जाते हैं तो वे स्थितिको सँभालकर यदि कोई बुराई है तो उसे दूर करनेमें आपकी सहायता कर सकेंगे और तब जो लोग मुझसे रैयतपर अत्याचार होनेकी बराबर शिकायतें कर रहे हैं, उन्हें मैं सन्तुष्ट कर सकूँगा। श्री एन्ड्रयूजको भेजनेके मेरे प्रस्तावके बारेमें कृपया आप अपना जवाब तार द्वारा साबरमती भेजें।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ११७३३) की फोटो-नकलसे।

२५-२३
 
  1. एस० एन० १५९३२।