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२९२. टिप्पणियाँ बी-अम्माँ

बी-अम्माँ

यह मानना मुश्किल है कि बी-अम्माँका देहान्त हो गया है। बी-अम्माँकी उस राजसी मूर्तिको या सार्वजनिक सभाओंमें उनकी बुलन्द आवाजको कौन नहीं जानता? बुढ़ापा होते हुए भी उनमें जवानों-जैसी ताकत थी। खिलाफत और स्वराज्यके लिए उन्होंने अथक यात्राएँ कीं। इस्लामकी कट्टर अनुयायी होते हुए भी उन्होंने देख लिया था कि इस्लामका कार्य, जहाँतक मनुष्यके बसकी बात है, भारतकी आजादीपर निर्भर है। इतने ही विश्वासके साथ उन्होंने यह भी महसूस कर लिया था कि हिन्दुस्तानकी आजादी बिना हिन्दू-मुस्लिम एकता और खादीके असम्भव है। इसलिए वे अविराम एकताका प्रचार करती रहीं। यह उनके लिए एक अटल सिद्धान्त हो गया था। उन्होंने अपने तमाम विदेशी और मिलके कपड़ोंका परित्याग कर दिया था और खादीका ही उपयोग करती थीं। मौलाना मुहम्मद अली मुझे बताते हैं कि बी-अम्माँने उन्हें यह हुक्म दे रखा था कि उनके जनाजेपर सिवा खादीके और कुछ न होना चाहिए। उनकी बीमारीके दिनोंमें जब कभी मुझे उनके नजदीक जाने का सौभाग्य प्राप्त होता तब वे हमेशा स्वराज्य और एकताकी बातें पूछतीं। उसके बाद ही प्रायः वे खुदासे दुआ करतीं 'या खुदा, हिन्दुओं और मुसलमानोंको ऐसी अक्ल बख्श कि जिससे ये एकताकी जरूरत को समझें और रहम करके स्वराज्य देखनेके लिए मुझे जिन्दा रहने दे।' इस बहादुर और शरीफ आत्माकी यादगार कायम रखनेका सबसे अच्छा तरीका यही है कि हम उस अनुष्ठानके प्रति उनके उत्साह और उमंगका अनुकरण करें जो हम सबका अनुष्ठान है। हिन्दू-धर्म भी एकता और स्वराज्यके बिना उतना ही खतरेमें है जितना कि इस्लाम। परमात्मा हिन्दुओं और मुसलमानोंको बी-अम्मी जैसी सहज बुद्धि दे, ताकि वे इस बुनियादी बातकी कद्र कर सकें। परमात्मा उनकी आत्माको शान्ति दे और अली-भाइयोंको शक्ति दे कि वे उनके सौंपे कार्यको जारी रखें।

बी-अम्माँकी मृत्युकी रातके उस प्रभावोत्पादक और गम्भीर दृश्यका वर्णन किये बिना मैं नहीं रह सकता। उस समय मुझे उनके पास ही रहनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ था। यह सुनते ही कि अब वे अपने जीवनकी अन्तिम साँसें ले रही हैं, मैं और सरोजिनी देवी वहाँ दौड़े गये। उनके परिवारके कितने ही लोग आसपास जमा थे। परिवारके मित्र और चिकित्सक डा० अन्सारी भी मौजूद थे। वहाँ रोने-सुबकने की आवाज सुनाई नहीं देती थी, अलबत्ता मौलाना मुहम्मद अलीके गालोंपर आँसू टपक रहे थे। बड़े भाईने बड़ी कठिनाईसे अपने-आपको रोक रखा था, हालाँकि उनके चेहरेपर एक असाधारण गम्भीरता छाई हुई थी। सब लोग अल्लाहका नाम ले रहे थे। एक सज्जन अन्त समयकी प्रार्थना कर रहे थे। कॉमरेड प्रेस बी-अम्माँके