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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आरोप तो दादाभाई नौरोजी और न्यायमूर्ति रानडे तकपर लगाये गये थे। उनपर सन्देह किया गया और उनके पीछे खुफिया विभागके लोग तैनात कर दिये गये थे। लाला हरकिशनलालका सम्बन्ध किसी हिंसावादी दलसे उतना ही था जितना कि खुद सर मायकेल ओ'डायरका हो सकता था, फिर भी उस निरंकुश सरदारने उन्हें गिरफ्तार कराकर जेल भिजवा दिया। यदि स्वराज्य दलकी इस विपत्तिके समयमें उनका साथ न देता तो मैं देशके प्रति अपने कर्त्तव्यसे च्युत होता। कोई इस बातको निर्भ्रान्त रूपसे दिखा दे कि हिंसात्मक कार्रवाइयोंसे स्वराज्य दलका कुछ भी सम्बन्ध है, तो निश्चय ही जितनी कड़ी भाषाका प्रयोग करना मेरे लिए सम्भव है उतनी कड़ी भाषामें मैं उसकी भर्त्सना करने को तैयार हूँ। ऐसा सबूत मिल जानेपर मैं उससे अपना सारा सम्बन्ध तोड़ लूँगा। लेकिन जबतक ऐसा नहीं होता, तबतक तो मुझे उनका साथ देना ही पड़ेगा, यद्यपि मैं कौंसिल-प्रवेशकी उपयोगितामें या कौंसिलमें संघर्ष चलानेके उनके कुछ ऐसे तरीकोंमें विश्वास नहीं रखता।

परन्तु स्वराज्य दलको कांग्रेसका एक अभिन्न अंग मान लेनेका मतलब यह नहीं है कि लोग व्यक्तिगत तौरपर भी असहयोग करना छोड़ दें। इसका मतलब सिर्फ इस बातकी स्वीकृति है कि स्वराज्य दल कांग्रेसका एक जबरदस्त और वर्धमान अंग है और यदि वह जोर-आजमाई किये बिना कांग्रेसमें गौण स्थान ग्रहण करनेको तैयार हो और यदि ऐसी जोर-आजमाईसे बचना आवश्यक अथवा समयोचित भी हो तो स्वराज्य दलको विधिपूर्वक निश्चित रूपसे मान्यता दिये बिना काम चल ही नहीं सकता। लेकिन हर कांग्रेस जनके बारेमें सिर्फ इसीलिए कि वह कांग्रेसका सदस्य है, यह नहीं माना जाता कि वह कांग्रेसके कार्यक्रमकी तमाम मदोंको मानता है। मैं मानता हूँ कि मेरी अपनी स्थिति इससे कुछ भिन्न है। इस समझौतेके प्रणयनमें मेरा हाथ रहा है और मुझे इस बातका दुःख भी नहीं है। सही हो या गलत, लेकिन देश मुझसे कुछ मार्गदर्शनकी आशा रखता है और मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि स्वराज्यदलको अपरिवर्तनवादियोंकी ओरसे हर प्रकारकी विघ्न-बाधासे मुक्त रहकर अपने कार्यक्रमके अनुसार कार्य करनेका पूरा-पूरा अवसर देना देशके लिए हितकर ही होगा। यदि अपरिवर्तनवादी लोगोंको पसन्द नहीं हो तो उनके सामने स्वराज्यवादियों की गतिविधियोंमें शरीक होनेकी कोई मजबूरी नहीं है। उन्हें इस बातकी पूरी छूट है कि वे केवल रचनात्मक कार्यक्रमको ही कार्यान्वित करें; वे और स्वराज्यवादी दोनों इसीको पूरा करनेके लिए बाध्य भी हैं। वे व्यक्तिगत तौरपर असहयोग चलाते रहने के लिए भी स्वतन्त्र हैं। लेकिन कांग्रेस द्वारा असहयोगके स्थगित किये जानेका मतलब यह अवश्य है कि असहयोगी कांग्रेससे कोई समर्थन या शक्ति नहीं प्राप्त कर सकते। उन्हें स्वयं अपने अन्दरसे शक्ति जुटानी पड़ेगी और यही उनकी कसोटी और परीक्षा है। यदि उनकी आस्था कायम रही तो यह उनके लिए भी अच्छी बात है और असहयोग के लिए भी। यदि असहयोग स्थगित कर देनेके साथ ही वह समाप्त हो जाता है तो सार्वजनिक जीवनमें एक शक्तिके रूपमें असहयोगका कोई स्थान नहीं रह जायेगा। पर एक मित्र कहते हैं कि जब खुद आप ही डाँवाडोल हो रहे हैं तब