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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उतना असर डाले। इससे मुझे उसकी तमाम खूबियों का पूरा-पूरा ज्ञान हो जायेगा और मैं अपना यह इरादा भी छिपाना नहीं चाहता कि उसके प्रभावमें आकर मैं स्वयं उसीपर अपनी कार्य-विधिके पक्षमें प्रभाव डालनेकी आशा रखता हूँ। यदि इस प्रक्रियामें वही मेरी शुद्धि कर दे, मुझे अपने मतका बना ले, तो वाह वाह! फिर तो मैं बुलन्द आवाजमें अपने मतान्तरणकी घोषणा करूँगा। यह बुद्धिसे-बुद्धिको जगाकर, हृदयसे-हृदयका स्पर्श करके शुद्धीकरणका एक उदाहरण होगा। यह मतान्तरणकी अहिंसक विधि है और असहयोगियोंको चाहिए कि वे मेरे साथ शक्ति लगाकर देखें। साथ ही वे व्यक्तिगत रूपसे अपने आचार-विचारपर भी दृढ़ बने रहें। यदि उनका असहयोग प्रेमसे उद्भूत होगा तो मैं विश्वास दिलाता हूँ कि वे स्वराज्यवादियों को अपने मार्गपर अवश्य ले जायेंगे और यदि न भी ला पाये तो निजी तौरपर कुछ हानि तो होगी ही नहीं। यदि देश उनके साथ है और यदि स्वराज्यवादी लोग उनका अनुसरण नहीं करते तो उनका स्थान अपने-आप गौण हो जायेगा। और यदि उन्होंने बारह महीनेकी निर्धारित अवधिमें अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर दी तो वे कांग्रेसके निर्विवाद कर्ता-धर्त्ता बन जायेंगे और असहयोगियोंको अल्पसंख्यकों के दर्जेसे ही सन्तोष मानना पड़ेगा। वे चाहें तो अल्पसंख्यकोंकी उस सम्भावित सूचीमें मेरा नाम अभी से लिख लें।

विद्यार्थियोंके साथ भी समस्या वही है। असहयोग भले ही स्थगित कर दिया जाये, लेकिन राष्ट्रीय पाठशालाएँ बन्द नहीं की जायेंगी। वे तो अब एक निश्चित तथ्य के रूपमें वर्तमान हैं। वे असहयोगके अच्छेसे -अच्छे परिणामोंमें से हैं। इसलिए विद्यार्थियोंसे आशा की जाती है कि वे झण्डेको लहराये रखेंगे और देशको दिखाएंगे कि कांग्रेसके असहयोग कार्यक्रम रद कर देनेपर भी वे फूलती-फलती रहेंगी। दृढ़ताके साथ खड़े रहनेके लिए अनुकूल परिस्थितियोंकी आवश्यकता तो उसे होती है, जिसकी आस्था नकली हो। सच्ची आस्थावाला व्यक्ति तो वही है जो बुरीसे-बुरी परिस्थितियोंमें भी अपनी टेकपर डटा रहता है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २०-११-१९२४

२९४. संदेश: 'बॉम्बे क्रॉनिकलको'

[ २१ नवम्बर, १९२४ से पूर्व ]

चरखेके बिना स्वराज्य सम्भव नहीं है।

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे क्रॉनिकल, २१-११-१९२४