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२९६. भाषण: सर्वदलीय सम्मेलन, बम्बई में

२१ नवम्बर, १९२४

बंगाल अधिनियमपर पहला प्रस्ताव पेश करनेके लिए कहे जानेपर श्री गांधीने तद्विषयक प्रस्ताव पेश करनेके बजाय यह प्रस्ताव रखा कि अन्तिम प्रस्ताव तैयार करनेके लिए एक प्रातिनिधिक समिति नियुक्त की जाये और उस प्रस्तावको सम्मेलनमें अगले दिन पेश किया जाये।

यह निश्चय किया जाता है कि सम्मेलनमें भाग लेनेवाले दलोंके नेताओंकी एक छोटी समिति तत्काल नियुक्त की जाये जो बंगाल सरकार द्वारा भारत सरकारकी सहमति और स्वीकृतिसे अपनाये गये दमनकारी कार्योके सम्बन्धमें सम्मेलनके सम्मुख प्रस्तुत करनेके लिए एक प्रस्तावका मसविदा तैयार करे। यह समिति [ सम्मेलनके ] अध्यक्षको रात्रिमें १० बजे या उससे पहले अपना मसविदा दे दे।[१]


श्री गांधीने कहा:

अध्यक्ष महोदय, बहनो और भाइयो,

मौलाना मुहम्मद अलीके निमन्त्रणपर हम सब यहाँ कुछ चीजोंपर विचार करने के लिए एकत्र हुए हैं जिनमें से एक, और शायद सबसे अधिक तात्कालिक महत्त्वकी चीज यह है कि भारत सरकारकी सहमति और स्वीकृतिसे बंगाल सरकारने जो दमनकारी नीति अपनाई है उसके सम्बन्ध में यदि कोई कदम उठाना सम्भव है तो उसकी सलाह हम इस सम्मेलनको दें। मौलाना मुहम्मद अली और कांग्रेस कार्य समितिसे तथा साथ ही स्वराज्य दलसे जिनका सम्बन्ध है, उनकी यह इच्छा थी कि दमनकारी नीतिके बारेमें इस सम्मेलनमें उपस्थित सभी दलोंकी सहमति से एक प्रस्ताव रखा जाये और वह सर्वसम्मतिसे पास किया जाये।[२] जिनपर हममें मतभेद हैं

  1. यह अनुच्छेद 'बॉम्बे क्रॉनिकल' के २२-११-१९२४ के अंकसे लिया गया है।
  2. भारतके सभी वर्गों और जातियोंका तथा सभी प्रकारके राजनीतिक विचारोंका प्रतिनिधित्व करनेवाले इस सम्मेलनका दृढ़ मत है कि आतंकवादी संगठन भारतके लोगोंको कभी स्वराज्य नहीं दिला सकते और यदि ऐसे संगठन हैं तो वह पूरे जोरसे उनकी निन्दा और भर्त्सना करता है, लेकिन साथ ही यह सम्मेलन गवर्नर जनरल द्वारा १९२४ का दण्ड-विधि संशोधन अध्यादेश लागू किया जाना अत्यन्त अनुचित मानता है और उसकी निन्दा करता हैं क्योंकि यह अध्यादेश एक असाधारण कदम है और वैयक्तिक स्वतन्त्रतापर सीधा हमला है, जिसका विधिकरण विना विधानमण्डलकी स्वीकृतिके नहीं किया जाना चाहिए था और क्योंकि कार्यपालिका इसका सरलतासे जबरदस्त दुरुपयोग कर सकती है जिसके परिणामस्वरूप निर्दोष