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२९७. भाषण: सर्वदलीय सम्मेलन, बम्बई में

२१ नवम्बर, १९२४

श्री गांधीने बहसका जवाब देते हुए कहा कि श्री रामस्वामी मुदालियरके संशोधनमें[१] जो सवाल उठाया गया है वह एक बड़ा सवाल है और सभी दलोंकी एकताके बड़े सवालको लेनेसे पहले मैं छोटे सवालका निपटारा करना चाहूँगा। उन्होंने संशोधनकी टीका करते हुए उसे बेतुकी बात बताया। श्री गांधीने पूछा कि यदि इस सवालपर हममें सहमति नहीं हो सकी तो इसकी क्या आशा है कि हम एक ज्यादा बड़े सवाल पर सहमत हो सकेंगे? उन्होंने श्रोताओंको विश्वास दिलाया कि समिति यदि उचित समझेगी तो या तो बंगाल अध्यादेशका समर्थन करेगी और या वह उसकी भर्त्सना करेगी। उन्होंने श्रोताओंको बंगालके प्रति और यहाँतक कि सरकार के प्रति भी जिसने सम्मेलनसे सहायताकी माँग की है, अपने कर्त्तव्यका स्मरण दिलाया।

[ अंग्रेजीसे ]
न्यू इंडिया २२-११-१९२४

२९८. भेंट: एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडिया के प्रतिनिधिसे

बम्बई
२१ नवम्बर, १९२४

श्री गांधीने एसोसिएटेड प्रेसके एक प्रतिनिधिको आज शाम बताया कि स्थानीय अखबारकी इस खबरमें कोई सचाई नहीं है कि उन्होंने लिबरल पार्टीवालोंसे कहा है कि वे कताई सदस्यता हटा लेने और "स्वराज्य" शब्दका अर्थ औपनिवेशिक स्वराज्य तक सीमित रखनेको तैयार हैं। श्री गांधीने श्री चिन्तामणि तथा अन्य नरमदलीय नेताओंसे वस्तुतः जो कहा था वह यह था कि यदि वे ऐसा चाहते हों तो उन्हें कांग्रेसमें शामिल हो जाना चाहिए और अपनी राय स्वीकार करवानेका प्रयत्न करना चाहिए।

[ अंग्रेजीसे ]
न्यू इंडिया, २२-११-१९२४
  1. मत लिये जानेपर संशोधन भारी बहुमत से गिर गया।