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२९९. भाषण: सर्वदलीय सम्मेलन, बम्बई में

२२ नवम्बर, १९२४

सदनका मत जाननेके बाद सम्मेलनके अध्यक्षने सभी दलोंकी एकता विषयक प्रस्तावपर बहसकी अनुमति दे दी। श्री गांधीसे प्रस्ताव पेश करनेको कहा गया तो उन्होंने निम्नलिखित शब्दोंमें उसे पेश किया:

यह सम्मेलन एक समिति नियुक्त करता है जिसमें दीवान बहादुर टी० रंगा-चारियर, दीवान बहादुर एस० रामचन्द्र राव, सर पुरुषोत्तमदास ठाकुरदास, माननीय वी० एस० श्रीनिवास शास्त्री, सर तेजबहादुर सप्रू, श्री सी० वाई० चिन्तामणि, श्रीमती एनी बेसेंट, पण्डित मालवीय, श्री आर० पी० परांजपे, सर पी० एस० शिवस्वामी अय्यर, श्री चित्तरंजन दास, श्री मुहम्मद याकूब, श्री एम० एच० किदवई, श्री मुहम्मद अली, श्री मुहम्मद अली जिन्ना, श्री शिन्दे, श्री भूलाभाई देसाई, श्री टी० वी० पार्वती, श्रीमती सरोजिनी नायडू, हकीम अजमलखाँ, श्री अबुल कलाम आजाद, श्री जे० बी० पेटिट, श्री एस० श्रीनिवास आयंगार, बाबू भगवानदास, श्री न० चि० केलकर, श्री जोजेफ बैप्टिस्टा, सरदार मंगलसिंह, लाला लाजपत राय, श्री चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, श्री विपिन चन्द्र पाल, लाला हरकिशनलाल, यूरोपियन एसोसिएशनके अध्यक्ष, एंग्लो-इंडियन एसोसिएशन के अध्यक्ष, क्रिश्चियन एसोसिएशन के अध्यक्ष, अब्राह्मण संघ के अध्यक्ष (और कुछ अन्य, जिनके नाम बादमें जोड़े गये) सदस्य होंगे। यह समिति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके साथ देशके अन्य राजनीतिक दलोंको फिरसे मिलाने और स्वराज्यकी एक योजना तैयार करनेका सर्वोत्तम रास्ता क्या हो---इसपर विचार करेगी। यह हिन्दू-मुस्लिम और उनके राजनीतिक पहलुओंकी हद-तक ऐसे ही दूसरे सवालोंके हल---यह समिति ३१ मार्च, १९२५ से पहले-पहले रिपोर्ट दे देगी, सम्मेलनकी बैठक ३० अप्रैलसे पहले-पहले ही बुलाई जायेगी और रिपोर्ट सम्मेलन आरम्भ होनेसे एक पखवाड़ा पहले प्रकाशित कर दी जायेगी।

श्री गांधीने कहा: वर्षों बाद सभी दल एक साथ मिले हैं। समय और महत्त्वको दृष्टिसे यह प्रस्ताव सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण और अत्यन्त जरूरी है। सरकार आज श्री चितरंजन दासका सर भी ले ले तो भी बंगालका काम रुकेगा नहीं और न भारतका। लेकिन यदि हमें राजनीतिक स्वाधीनता न मिली तो हमारा नाश हो जायेगा। प्रस्तावपर बोलते हुए उन्होंने कहा कि इस प्रश्नपर देशके सर्वोत्तम मस्तिष्क विचार करेंगे। मैं जन्मजात आशावादी हूँ। मुझे लगता है कि एकताके लिए नहीं बल्कि स्वराज्यके लिए हमें ठोक निर्णय लेना ही होगा। श्री गांधीने डा० किचलूका तार पढ़कर सुनाया जिसमें बिना सिद्धान्तोंकी बलि दिये एकताकी इच्छा प्रकट की थी। उन्होंने इसके बाद कहा मुझे इस रास्तेमें दुर्गम बाधाएँ दिखाई पड़ती हैं। मैं