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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लोगोंको कताई सदस्यताके बारेमें राजी नहीं कर सका हूँ। मैं कुछ समय चाहता हूँ जिसमें या तो मैं दूसरोंको अपनी बात समझा सकूँ या दूसरे मुझसे अपनी बात मनवा लें। हम सबको एक व्यावहारिक और वास्तविक एकता स्थापित करनेके लिए मिलकर रास्ता ढूँढ़ना चाहिए। मैंने जिस समितिका प्रस्ताव किया है वह सोच-विचार करनेके बाद अपनी रिपोर्ट तैयार करेगी। हालाँकि एकताके लिए और ज्यादा इन्तजार करना कष्टदायी है लेकिन यह अपरिहार्य है। कोई नहीं कह सकता कि समिति किसी स्वीकार्य निर्णयपर पहुँच ही जायेगी। हमारे चारों ओर जो बादल छाये हुए हैं उनके बावजूद मैं आशा करता हूँ कि समिति इस अँधेरेको चीरकर एक व्यावहारिक कार्यक्रम बना सकेगी।

[ अंग्रेजीसे ]
न्यू इंडिया, २४-११-१९२४

३००. एककी सो देशकी

बंगालकी लाज सारे हिन्दुस्तानकी लाज है। एक हिन्दुस्तानीकी लाज सारे देशकी ही लाज है--जिस दिन हम ऐसा समझने लगेंगे उस दिन स्वराज्य हमसे दूर न रह जायेगा। यह भावना फैली हुई तो खूब है, परन्तु अब भी उसका उतना प्रचार नहीं हुआ है, जितना कि होना चाहिए। यदि मेरा भाई संकटमें हो, यदि उसकी लाज बिना कारण जा रही हो तो मैं केवल सहानुभूतिका प्रस्ताव पास करके ही न बैठ जाऊँगा, बल्कि उसकी मददके लिए जा पहुँचूँगा। अभी हममें देशके प्रति ऐसी भावना जाग्रत नहीं हुई है। कश्मीरसे लेकर कन्याकुमारीतक, आसाम से लेकर सिन्धतक किसी भी हिन्दुस्तानीको दुःखमें पड़ा देखकर जब करोड़ोंके मनमें यह भावना उत्पन्न होगी कि हमारा सगा भाई दुःखमें है तब बंगाल-सरकारकी राजनीतिको निर्मूल करनेका उपाय हमें सहज ही मिल जायेगा।

आज हम अँधेरेमें भटक रहे हैं, क्योंकि हमारी भ्रातृ-भावना इतनी प्रज्वलित नहीं है। जब शुद्ध भावनाका उदय होगा तब उसका प्रकाश हमें अपना रास्ता सहज ही दिखा देगा। हम आज शिथिल हो रहे हैं। जब भ्रातृ-भावनाकी वाष्प हमारे हृदयसे भभककर निकलेगी तब हमारी गतिमें प्रबल वेग आ जायेगा; आज हम बिखरे हुए दिखाई देते हैं; हम आपसमें ही लड़ रहे हैं। जब हमारा मानस तीव्र भातृ-भावनारूपी सरेससे चिपकना शुरु हो जायेगा तब हम एक-दूसरेसे इस तरह गले मिलेंगे और चिपक जायेंगे कि हम अनेक होते हुए भी एक दिखाई देंगे।

यदि हमारा भाई भूखों मरता हो और हमें मालूम हो कि चरखा चलानेसे उसे आजीविका मिल सकती है परन्तु वह आलस्यके कारण नहीं चलाता और यदि हम खुद कातकर उसे पदार्थपाठ पढ़ायें तो वह कातेगा, तो हम जरूर चरखा चलायेंगे। ऐसी हालत आज हिन्दुस्तानमें करोड़ों लोगों की है। फिर भी उन्हें पदार्थपाठ पढ़ानेके