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३०१. गुजरातका धर्म

मुझे उम्मीद है कि मैंने जो असहयोग मुल्तवी करनेकी सलाह कांग्रेसको दी है, गुजरात उसका यह अर्थ नहीं करेगा कि उसे भी असहयोग त्याग देना है। जिस प्रकार उसमें व्यक्तियोंको यह सलाह नहीं दी गई है कि वे असहयोग छोड़ दें उसी प्रकार प्रान्तोंको भी यह सलाह नहीं दी गई है।

यदि कांग्रेस असहयोगको मुल्तवी रखेंगी तो उसका इतना ही मतलब है कि वह परिस्थितिपर विचार करके जनताको उतनी सुविधा दे देगी। लेकिन जहाँ असहयोगमें लोगोंको और लोकनायकोंको श्रद्धा है, जहाँ वैमनस्य नहीं है और जहाँ किसी प्रकारकी अव्यवस्था नहीं है, वहाँ असहयोगको मुल्तवी करनेके प्रस्तावका कोई भी बुरा असर नहीं होना चाहिए। इसके विपरीत ऐसे प्रान्तोंके लोगोंको चाहिए कि वे अपने-अपने कार्यको और भी दृढ़ बनायें तथा शोभान्वित करें।

उदाहरणके लिए, गुजरातकी राष्ट्रीय पाठशालाएँ कायम रहें और उनमें वृद्धि हो, जिन वकीलोंने वकालत छोड़ दी है, वे अपने निश्चयमें दृढ़ बनें---इसके साथ ही जहाँ अभी भी वैर-भाव हो वहाँ प्रेम-भावका प्रवेश हो। जो लोग कौंसिलोंमें जायें अथवा फिरसे वकालत शुरू करें उनके साथ कोई तनिक भी द्वेष न करे, उनकी निन्दा न करे। सभी अपनी-अपनी अन्तरात्माकी आवाजका अनुसरण करके असहयोगी अथवा सहयोगी बनें। कांग्रेसके प्रस्तावका परिणाम यह होना चाहिए कि पुराने प्रस्तावके बन्धनके कारण चलनेवाला असहयोग न चले---वह एक युक्ति अथवा प्रयोगके रूपमें जारी न रहे, बल्कि धर्मका स्थायी रूप ग्रहण कर ले। कहने का अभिप्राय यह है कि जहाँ-जहाँ सरकारकी नीति कुल मिलाकर हानिकर हो वहाँ-वहाँ अहिंसात्मक असहयोग धर्म है, यह जानकर जनता अथवा व्यक्तिको असहयोग करना चाहिए। मतलब यह कि किसी प्रस्तावके बन्धनके बिना भी, जिनकी इच्छा असहयोगपर कायम रहनेकी हो, वे उसपर कायम रह सकते हैं।

हम कह सकते हैं कि कांग्रेसका प्रस्ताव चालनगाड़ीके समान है। इतने अनुभवके बाद हमें यह देखना है कि कितने लोग चालनगाड़ीके बिना--कांग्रेसके सहारे के बिना---टिके रह सकते हैं। यदि कुछ लोग टिके रहें तो हम समझ सकेंगे कि हममें से कितने लोगोंने प्रेममय असहयोगके सिद्धान्तको समझा है। मेरा दृढ़ विश्वास है कि ऐसे व्यक्ति तो बहुत हैं, किन्तु साथ ही मेरी यह मान्यता भी है कि ऐसे प्रान्त भी एकाधिक हैं और महागुजरात उनमें से एक है।

प्रान्तके रूपमें महागुजरातने ही सबसे पहले असहयोग आरम्भ किया था। मेरी इच्छा है कि वह उसे गौरवान्वित करे। अब तो असहयोग तभी निभ सकेगा जब वह निर्मल होगा। उसमें नम्रता, विवेक, प्रेम, शान्ति, विचार, गम्भीरता, दृढ़ता और सत्य झलक उठना चाहिए। शान्तिमय असहयोग प्रकृतिका अनुसरण करेगा। जिस प्रकार हम प्रकृति में अदृश्य रूपसे चलनेवाली पोषक क्रियाओंको केवल उनके परिणामोंसे