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गुजरातका धर्म

ही जानते हैं, उसी प्रकार शान्तिपूर्ण असहयोग के महत्त्वको हम उसके परिणामोंसे ही जान सकते हैं। "ईथर" एक भारी शक्ति है, लेकिन उसे किसने देखा है? हम उसे उसके परिणामोंसे ही जानते हैं। बिजलीको किसने देखा है? लेकिन हम उसे तारों, चक्कियों और इंजनोंके जरिये जानते हैं। हम मिट्टीमें दबे बीजको नहीं देख पाते। यदि हम उसे खोदकर देखने बैठें तो वह उगेगा ही नहीं। लेकिन उसके परिणामके रूपमें अनाज, घास और फलोंके पौधों और पेड़ोंको हम देखते हैं। प्रेममय असहयोग इन सब अदृश्य वस्तुओं और शक्तियोंसे भी कहीं अधिक सूक्ष्म, परन्तु प्रबल शक्ति है। असहयोगीका आचरण भी उतना ही अदृश्य और सूक्ष्म होना चाहिए। उसमें दम्भ, ढोंग, अहंकार और आडम्बरके लिए गुंजाइश नहीं है। वह असहयोग करेगा किन्तु सहयोगीको दुःख हो, ऐसा प्रेमवश नहीं होने देगा। अंग्रेज अधिकारियोंके हृदयको भी वह प्रेमसे जीतनेका प्रयास करेगा। उनका तिरस्कार नहीं करेगा। जब वह उक्त अधिकारीके अनुकूल नहीं हो सकता तब भी उसका व्यवहार विनय और विवेकसे युक्त होगा।

जो ऐसे असहयोगको नहीं पहचान सकता अथवा इसका पालन नहीं कर सकता, उसके लिए तो मूल स्थिति यानी सहयोग करना ही योग्य है। जो असहयोग पिता पुत्रसे और पुत्र पितासे कर सकता है, वही सच्चा असहयोग है। मैंने सन् १९२० में हिन्दुस्तानको उसी धार्मिक असहयोगसे परिचित करानेका प्रयत्न आरम्भ किया था। मैं जानता हूँ कि यह व्यापार बहुत बड़ा था और बड़ा है। मेरे पास पूँजी कम थी और अब भी कम है। प्रयत्न करनेका अधिकार हर किसीको है। उस अधिकारसे ही मैंने यह प्रयत्न शुरू किया है। जिन्होंने उसे शुद्ध रूपसे समझा है, उनसे मैं सहायताकी प्रार्थना करता हूँ। मैंने आज असहयोग मुल्तवी करनेका जो सुझाव दिया है उसमें भी प्रेममय असहयोग निहित है। जैसा कहते हैं, प्रेमपंथ तो पावककी ज्वाला है। उसे देखकर बहुत-से लोग भाग खड़े हुए हैं। जिसे भागना हो वह भले ही भागे; लेकिन इस ज्वालाको जो सहन करेगा उसे विजयश्री अवश्य प्राप्त होगी।

प्रेम रहित असहयोगको मैं नहीं जानता और न उसे जाननेकी मेरी इच्छा ही है। हिन्दुस्तानकी स्वतन्त्रताके लिए, हिन्दू-धर्म अथवा इस्लामकी रक्षाके लिए, हिन्दू-मुस्लिम एकताके लिए और अस्पृश्यता-निवारणके लिए मेरे पास इसके अलावा और कोई दवा नहीं है। मैं वैरसे वैरका निवारण असम्भव मानता हूँ और मैं जो हमेशा चरखेको आगे रखता हूँ उसका भी एक कारण उसमें निहित अहिंसा है। मौलाना मुहम्मद अलीने इस्लामी साहित्यमें से चरखेकी स्तुतिमें कहे गये वचनोंको एकत्र करके अपने 'हमदर्द' में प्रकाशित किया है। पाठक 'नवजीवन' के इस अंकमें उनका अनुवाद देखेंगे। वे उनपर विचार करें।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २३-११-१९२४
२५-२४