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३०२. विद्यार्थी क्या करें?

"जब असहयोग स्थगित रहनेवाला है, तब विद्यार्थियोंका क्या होगा? उनकी क्या स्थिति होगी? क्यों नहीं वे फिर सरकारी स्कूलोंमें चले जायें? अगर उनसे ऐसा कहा जाता है कि वे वापस न जायें तो यह कैसी निर्दयता है? उन्होंने सबसे अधिक बलिदान किया है। क्या आप अब उनसे और भी बलिदान कराना चाहते हैं? क्या इस तरह हमेशा बेचारे गरीबोंका ही बलिदान दिया जाता रहेगा? अगर इस तरह स्वराज्य लेना हो तो न जाने स्वराज्य मिलनेपर हम-जैसे गरीबोंका क्या हाल होगा। असहयोग स्थगित रखने की बात सुनकर तो विद्यार्थियोंके होश ही उड़ गये हैं।"

कुछ विद्यार्थी इस तरहकी बातें कह रहे हैं। आज जो परिवर्तन हो रहे हैं, उन्हें समझना जब प्रौढ़ असहयोगियोंके लिए भी मुश्किल हो रहा है तब विद्यार्थियों को घबराहट हो, इसमें क्या आश्चर्य? उनके बलिदानके विषयमें दो मत नहीं हो सकते। फिर भी उपर्युक्त विचार-सरणीमें भूल तो है ही।

प्रस्ताव असहयोग मात्रको स्थगित रखनेका नहीं, बल्कि कांग्रेस द्वारा असहयोगके प्रसारको स्थगित रखने का है। जिस वस्तुको जनताका एक प्रमुख हिस्सा---जिसे उस वस्तुमें पहले विश्वास था---त्याग दे उस वस्तुको सार्वजनिक रूपमें कायम नहीं रखा जा सकता और न वह सार्वजनिक मानी ही जा सकती है। यह भी नहीं हो सकता कि जिस वस्तुको कांग्रेस छोड़ दे, उसे सारी जनता भी छोड़ दे। कांग्रेसको कितनी ही चीजें बेमनसे, अनिच्छासे छोड़नी पड़ती हैं। लेकिन वह चाहती तो यही है कि अगर जनता उसे न छोड़े तो अच्छा।

पैसेकी कमीके कारण अगर कांग्रेस आज जगह-जगह ऐसी कुछ आदर्श पाठशालाएँ न खोल सके जिनमें हिन्दू-मुसलमान आदि भिन्न-भिन्न धर्मोके बच्चे एक साथ पढ़ सकें तो इसका मतलब यह नहीं कि दूसरे लोग भी ऐसी पाठशालाएँ न खोलें। सच तो यह है कि ऐसी पाठशाला कोई खोलेगा तो कांग्रेस उसे धन्यवाद देगी। उसी प्रकार यदि आज कांग्रेस असहयोगको स्थगित रखती है तो उसका कारण यह नहीं है कि असहयोगके सिद्धान्तोंमें उसकी श्रद्धा नहीं रही, बल्कि यह है कि जनताके प्रतिनिधियोंका एक बहुत बड़ा हिस्सा आज असहयोगको चलाने में असमर्थ है। फिर भी, कांग्रेसकी इच्छा तो यही हो सकती है कि अगर जनताका कोई भी हिस्सा असहयोग चलाकर उसकी शक्ति सिद्ध कर दिखाये तो वह उसे धन्यवाद देगी।

कांग्रेस यह नहीं चाहेगी कि जिन लोगोंने वकालत छोड़ रखी है, वे उसे फिरसे शुरू कर दें। लेकिन, जो वकील लाचार होकर वकालत करेंगे, कांग्रेस उनकी निन्दा नहीं करेगी। उसी प्रकार कांग्रेस कभी भी यह नहीं चाहेगी कि जिन विद्यार्थियोंने असहयोग कर रखा है, वे फिरसे सरकारी स्कूलोंमें जायें। किन्तु, यदि वे ऊब-थक कर या किसी दूसरे कारणसे सरकारी स्कूलोंमें जायेंगे तो कांग्रेस उनका तिरस्कार भी नहीं करेगी। परन्तु, उन्हें सुविधा देनेके लिए और उन्हें असहयोगी पाठशालाओंमें