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भाषण: अ० भा० कांग्रेस कमेटी, बम्बईमें

एक सिपाहीकी तरह, जिसके होनेका मैं दावा करता हूँ, मैं आगे ही बढ़ रहा हूँ। एक अहिंसक सिपाहीके नाते मैं जानता हूँ कि मेरी स्थिति क्या है और मुझे क्या करना चाहिए। मैं शायद आज तत्काल और आग्रहके साथ कोई ऐसा निर्णय नहीं दे सकता जिसे सब लोग स्वीकार कर लें। समझौतेका ऐसा अर्थ निकाला जा सकता है जो निश्चिय ही न मेरे मनमें था और न स्वराज्य दलके मनमें। स्वराज्यवादी सरकारकी सहायता नहीं करना चाहते; बल्कि इसके विपरीत अपनी पूरी योग्यता और बुद्धि द्वारा वे उस प्रणालीका अन्त करना चाहते हैं, जिसके अधीन हम वर्षोंसे कराह रहे हैं---वह प्रणाली जिसे मैं भ्रष्ट और आसुरी कहनेमें झिझका नहीं हूँ। उस प्रणालीके विरुद्ध मैंने जिन विशेषणोंका प्रयोग किया है उनमें से एक भी मैं वापस लेनेको तैयार नहीं हूँ। यह एक ऐसी प्रणाली है, जो यदि सुधारी नहीं जा सकती तो बिना किसी हिचकके अविलम्ब समाप्त कर दी जानी चाहिए। आज मैंने यदि यह समझौता किया है तो इस प्रणालीको नष्ट करनेका उद्देश्य सिद्ध करनेके लिए ही किया है। अगर मैं देखूँ कि सारे देशके विरुद्ध संघर्ष करके मैं इस अन्यायको समाप्त कर सकता हूँ तो मैं आज वैसा कर डालूँ। मैं कहता हूँ कि मैं ऐसा कर सकता हूँ। यदि मैं देखूँ कि मैं वैसा नहीं कर सकता तो मैं फौरन अपने कदम पीछे हटा लूँगा।

कहा जाता है कि यह समझौता मेरी तरफसे रियायतके रूपमें किया गया है। हाँ, यह रियायत दोनों ही पक्षोंकी ओरसे की गई है। दोनों ही पक्ष कुछ देना और कुछ लेना चाहते हैं। मेरा विश्वास है कि इस दुनियाके इतिहासमें या मानवके इतिहासमें वास्तवमें कोई चीज ऐसी नहीं है जो पारस्परिक रियायतपर आधारित न हो, और यह समझौता करनेके लिए मैंने जो उपाय अपनाया है, उससे मिलती-जुलती चीज न हो। अपरिवर्तनवादियोंके दृष्टिकोणसे इस समझौतेमें सबसे पहली चीज जो ध्यान देनेकी है वह यह कि इस समझौतेमें स्वराज्य दलको अपरिवर्तनवादियोंके साथ बराबरीका दर्जा प्राप्त हुआ है। मैं यह कहने का साहस करता हूँ कि अपरिवर्तनवादियोंके साथ बराबरीका दर्जा पाना उनका अधिकार है। यह रियायत करनेमें मैंने ऐसा कुछ नहीं किया है जो युक्तियुक्त और उचित न हो। यदि मुझे इस सदनको विभाजित करवाना होता या यदि मैं किसी तरह अपनेको यह विश्वास दिला सकता कि कांग्रेसको विभाजित करना देशके हितमें होगा तो मैं कुछ और ही करता। मैं कौंसिल प्रवेश कार्यक्रमकी उपयोगितामें विश्वास नहीं करता; लेकिन फिर भी मुझे देशके हितमें वैसा करना पड़ा। मैंने जो-कुछ किया है वह देशके हितमें है, मेरे अपने सिद्धान्तोंके हितमें है और असहयोगके हितमें है।

मैं स्वराज्यवादियोंकी उपेक्षा करनेकी स्थितिमें नहीं हूँ। मैं जानता हूँ कि उनके दलकी ताकत बढ़ रही है। मैं जानता हूँ कि वे जनताके एक बहुत बड़े और सशक्त वर्गका प्रतिनिधित्व करते हैं, जो कौंसिल-प्रवेशके पक्षमें है। मैं यह भी जानता हूँ कि उनके पास देशके सर्वोत्तम दिमागवाले लोग हैं। एक ऐसे वर्गका जो कौंसिलोंपर कब्जा करना चाहता है, सहयोग लिये बिना मुझे भय था कि मैं कोई प्रगति नहीं कर सकूँगा। स्वराज्यवादियों के अलावा लिबरल दलवाले हैं, इंडिपेंडेंट दलवाले है और कनवेंशन