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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दलवाले हैं। ये सभी अपरिवर्तनवादी कार्यक्रमके खिलाफ खड़े हैं। स्वराज्य दल अपने ढंगका एक अग्रगामी दल है। स्पष्टतः उन्होंने कौंसिलों और विधान सभाओंके वातावरणको प्रभावित किया है। मैं उनकी राजनीतिक भावनाओंकी अवहेलना नहीं कर सकता था, कोई नहीं कर सकता। जहाँतक "खद्दर" का सवाल है, उन्होंने औपचारिक और राजकीय समारोहोंके अवसरपर "खद्दर" पहननेकी मेरी अपीलका विरोध नहीं किया है। उन्होंने "खद्दर" सम्बन्धी मेरी अपीलको सदाके लिए ठुकराया नहीं है। मैं एक तरहसे यह स्वीकार करता हूँ कि असहयोगकी लड़ाईका या सविनय अवज्ञा आन्दोलनका नेतृत्व करना मैं तबतक असम्भव समझता हूँ जबतक हमारे साथ देशका प्रबुद्धवर्ग अर्थात् देशके प्रबुद्ध लोगोंका एक ऐसा बहुत बड़ा समूह न हो, जिसकी सहानुभूति हमारे पक्षमें हो और यहाँतक कि वह सक्रिय रूपसे हमारे साथ सहयोग करे। इसकी अपेक्षा हम तबतक नहीं कर सकते जबतक कि कुछ मामलोंमें हम उनकी बात न मानें। कौंसिल-प्रवेश के बारेमें रियायत देनेमें हम देखते हैं कि कौंसिल कार्यक्रमके कार्यकर्त्ता हमारे साथ हो जाते हैं और ये बुद्धिमान लोग हैं, ऐसे लोग हैं जिन्हें मैं व्यावहारिक लोग कहूँगा। कांग्रेस एक राष्ट्रीय सभा है। हमें कांग्रेसको इस तरह विकसित करना है ताकि वह हर तरह की रायका प्रतिनिधित्व कर सके। हमारे लिए यह सम्भव नहीं है कि कांग्रेसको हम हमेशा एक ही तरह की रायका प्रतिनिधित्व करनेवाली संस्था बनाये रखें। ऐसा करना अबुद्धिमत्तापूर्ण होगा। हमें सहिष्णुता बरतनी होगी, अगर और किसी चीजकी खातिर नहीं तो कमसे-कम इसलिए कि कांग्रेसमें सभी दलोंका प्रतिनिधित्व हो, सभी दल जनतामें राजनीतिक चेतना जगाने का काम करें। अगर हमें कांग्रेसमें सभी दलोंका प्रतिनिधित्व प्राप्त हो जाये, अगर हम कांग्रेसको विभाजित करना नहीं चाहते, अगर हम यह मानते हैं कि कांग्रेस शिविरमें स्वराज्यवादियोंकी संख्या काफी बड़ी है तो यह स्पष्ट है कि जब हमने समझौता किया है तब हम यह भी मानें कि कांग्रेसमें जो दर्जा हमारा है, वही उनका भी है। कांग्रेसके नामका इस्तेमाल करनेका उन्हें भी वैसा ही अधिकार है, जैसा हमें है। किसी भी अर्थ और किसी भी रूपमें भारतके सभी लोगोंकी राजनीतिक समानतापर कोई आँच नहीं आनी चाहिए---मेरी रायमें कांग्रेस, जैसी कि आज वह है, और जैसी कि कल वह होनी चाहिए, का यही अर्थ है।

अगला मुद्दा यह है। जैसा कि मेरा विश्वास है, स्वराज्य दलसे हमें जो मिला है, उससे ज्यादा हम नहीं पा सकते थे। जहाँतक सदस्यताकी शर्तका प्रश्न है, मेरा खयाल फिर भी यही है कि बहुत-से स्वराज्यवादियोंकी आम शिकायत या आपत्ति खद्दरके खिलाफ है। अपरिवर्तनवादी खद्दरकी सम्भावनाओंमें, उसकी क्षमता और सामर्थ्यमें विश्वास करते हैं। मुझे खद्दरकी सामर्थ्यमें पूरा विश्वास है। मैं इस विश्वासको चाहूँ भी तो मनसे निकाल नहीं सकता। सोते हुए, सपनेमें, खाना खाते समय हर वक्त मैं चरखेकी ही बात सोचता हूँ। चरखा मेरी तलवार है। मेरे लिए यह भारतकी स्वाधीनताका प्रतीक है। मैं ऐसा सोचे बगैर रह नहीं सकता। लेकिन स्वराज्यवादियोंका ऐसा खयाल नहीं है। उनमें से बहुतोंको भावनात्मक आपत्ति है। चूँकि ऐसा है, इसलिए