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३०६. पत्र: ब्रजकृष्ण चाँदीवालाको

कार्तिक कृष्ण १३ [२४ नवम्बर, १९२४][१]

भाई ब्रिजकिसन,

तुमारे दुःखकी खबर मुझको कल रात्रीको मीली। आज तार[२] दिया है। ईश्वर तुमको धीरज दे। जन्म मृत्यु एक ही वस्तु है यह बात यदि हम समज लें तो मृत्युका खेद क्यों करें? सच्चा मित्र कभी मरता नहिं है। अपनी धर्मपत्नि एक मित्र हि है। उसके गुणका हम अहोनिश स्मरण करते रहें तो मृत्युको अवकाश हि नहिं है। एक पत्नि-व्रतका पालन करनेकी दृढ़ता ईश्वर तुमको देवे।

बापूके आशीर्वाद

मूल पत्र (जी० एन० २३४८) की फोटो-नकलसे।

३०७. ईश्वर हम सबकी सहायता करे!

साबरमती
२६ नवम्बर, १९२४

डरते और काँपते हुए, मैं ऐसे समय अध्यक्षता बहुत प्रार्थना, बहुत हृदय-मन्थनके बाद और सो भी डरते और काँपते हुए, मैंने अगली कांग्रेसकी अध्यक्षता करना स्वीकार किया है। मैं ऐसे समय अध्यक्षता करने जा रहा हूँ जब मेरे, और कुछ उल्लेखनीय अपवादोंको छोड़कर, भारतके समस्त शिक्षित समुदायके बीच भेदकी जबरदस्त खाई दिखाई दे रही है और कुछ-एक ऐसे शिक्षित भारतीय नौजवानोंके अलावा, जिनकी कोई प्रसिद्धि नहीं है, देशका पूरा बौद्धिक वर्ग मेरी विचार-पद्धति और कार्य-विधिके विरुद्ध खड़ा जान पड़ता है। फिर भी चूँकि मैं जनसाधारणके बीच लोकप्रिय जान पड़ता हूँ और बहुत-से शिक्षित देशभाइयोंके विचारसे मैं भी देशको उतना ही प्यार करता हूँ जितना कि वे स्वयं करते हैं, इसलिए उनकी इच्छा है कि हमारे देशके इतिहासकी इस विकट घड़ीमें मैं कांग्रेसका दिशा-दर्शन करूँ।

मुझे लगता है कि मैं उनकी इच्छाका विरोध न करूँ, बल्कि इसके विपरीत देशके हितके लिए--मैं आशा करता हूँ कि ऐसा ही होगा--मैं उन्हें अपना उपयोग करने दूँ। अन्तिम निष्कर्षपर पहुँचनेके लिए मैं अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके निर्णयकी प्रतीक्षा कर रहा था। उसकी बैठकमें स्वराज्यवादी मौन रहे और वाणीके द्वारा जो कहा जा सकता था वह सब बड़े प्रभावपूर्ण ढंगसे उन्होंने अपने मौनके द्वारा ही

  1. और
  2. देखिए पिछला शीर्षक।