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ईश्वर हम सबकी सहायता करे!

कह दिया। मैं जानता हूँ कि उनमें से बहुत-से लोगों के मनमें सदस्यता सम्बन्धी शर्तों में प्रस्तावित परिवर्तनके प्रति कोई उत्साह नहीं है। लेकिन शान्ति और एकताकी खातिर उन्होंने मौन रहकर ही इस परिवर्तनके पक्ष में अपना मत दे दिया। अपरिवर्तनवादी लोग बड़े दुःखी और निराश थे, इस समझौतेपर वे दाँत पीस रहे थे, क्योंकि उन्हें लगा कि इस तरह तो जिन आदर्शोंको उन्होंने अपने मनमें बड़े प्यारसे सँजो रखा था, उनको ताकपर रखा जा रहा है। उन्होंने विरोध किया, किन्तु समझौते के खिलाफ मत नहीं दिया।

यह स्वराज्यवादियों और अपरिवर्तनवादियों, दोनोंके लिए श्रेयकी बात है, लेकिन काम करनेकी दृष्टिसे यह कोई बहुत उपयुक्त वातावरण नहीं है, विशेषकर ऐसी हालतमें जब किसीसे बहुत अपेक्षा की जा रही हो। लेकिन, यही वह उपयुक्त प्रसंग है, जबकि मैं अहिंसामें अपने विश्वासकी सच्ची कसौटी कर सकता हूँ। यदि मेरे मनमें अपरिवर्तनवादियों, स्वराज्यवादियों, लिबरलों, राष्ट्रीय स्वशासनवादियों, इंडिपेंडेन्टों,--इन सबके प्रति और इन्हींके प्रति क्यों, अंग्रेजोंके प्रति भी--समान प्रेमभाव है तो मेरे लिए भी और इस उद्देश्यके लिए भी सब-कुछ शुभ ही होगा।

मैं देशकी आँखोंमें धूल नहीं झोंकूँगा। मेरे लिए तो धर्म-विहीन राजनीति कोई चीज ही नहीं है। लेकिन जब मैं धर्मकी बात कहता हूँ तो मेरा मतलब रूढ़ियों और अन्धविश्वासोंसे नहीं है, उस धर्मसे नहीं है जो हमें घृणा करना और एक-दूसरेसे झगड़ना सिखाता है; मेरा मतलब तो सहिष्णुता के सार्वजनीन धर्मसे है। नैतिकताविहीन राजनीति ऐसी चीज है जिससे बचना चाहिए। इसपर आलोचक कहता है, "तब तो मुझे सार्वजनिक जीवनसे अलग ही हो जाना चाहिए।" लेकिन मेरा अनुभव ऐसा नहीं रहा है। मेरी कोशिश तो यह है कि मैं समाजमें ही रहूँ और फिर भी उसकी बुराइयोंसे अछूता रहूँ। जो भी हो, अभी तो कांग्रेससे भाग खड़ा होना मेरे लिए कायरता होगी--और अध्यक्ष-पद न स्वीकार करना मेरे लिए भाग खड़ा होना ही होगा, विशेषकर ऐसी हालतमें जब हर कोई मेरा मार्ग सुगम बनानेकी कोशिश कर रहा है।

अपने उद्देश्य और मानव-समाजमें मुझे पूरा विश्वास है। और भारतका मानव-समाज किसीसे भी घटकर नहीं है; शायद बढ़कर ही है। सच तो यह है कि यह उद्देश्य ही मानव-स्वभावमें विश्वासकी पूर्व-अपेक्षा रखकर चलता है। मार्ग यद्यपि अन्धकारपूर्ण प्रतीत होता है, लेकिन अगर ईश्वरके मार्ग-दर्शनमें मेरा विश्वास है और यह स्वीकार करनेके लिए मुझमें पर्याप्त विनय है कि उसके अचूक मार्ग-दर्शनके बिना मैं कुछ नहीं कर सकता तो निश्चय ही वह मेरे पथपर प्रकाश करेगा, मेरा मार्ग-दर्शन करेगा।

यद्यपि असहयोग और सविनय अवज्ञामें मेरी निष्ठा आज भी अटल है किन्तु मैं मानता हूँ कि इस समय राष्ट्रीय स्तरपर असहयोग या सविनय अवज्ञा करनेके लिए उपयुक्त वातावरण नहीं है। इसलिए मेरा प्रयत्न यही होगा कि जाति, रंग अथवा धर्मका कोई भेदभाव रखे बिना पारस्परिक सहिष्णुताके आधारपर सभी