३०८. पत्र: सतीशचन्द्र मुखर्जीको
[२६ नवम्बर, १९२४][१]
कृष्टोदासको भेजे गये आपके लम्बे तारके लिए धन्यवाद। उसके प्रत्येक शब्द से मेरे प्रति आपका प्रेम झलकता है। उसमें जो-कुछ कहा गया है उसके बारेमें बहस नहीं करूँगा। लेकिन मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मैंने जान-बूझकर गलती नहीं की है। दुर्योधन जानता था कि वह गलती कर रहा है। मैं बुराईके साथ समझौता नहीं कर रहा हूँ। लेकिन मैं वही कर रहा हूँ जो पाण्डवोंने किया था। उन्होंने जिस हदतक सम्भव था उस हदतक दुर्योधनके साथ समझौते की बात की। "तुम सब कुछ रखो। हमें केवल पाँच छोटे-छोटे गाँव दे दो, फिर तुम स्वतंत्र हो।" लगभग ऐसी ही घटना 'बाइबिल' में भी मिलती है। यदि एक भी भला व्यक्ति सोडममें होता तो नगरकी रक्षा हो जाती। लेकिन मेरे दिमागमें क्या चल रहा है इसका काफी संकेत मैंने आपको दे दिया है।
कृपया इसी प्रकार आगे भी सावधान करते रहें।
हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी
अंग्रेजी पत्र ( जी० एन० ५६०७ ) की फोटो-नकलसे।
३०९. पत्र: सी० एफ० एन्ड्रयूजको
२६ नवम्बर, १९२४
महादेवको लिखा तुम्हारा पत्र मैंने आज ही पढ़ा है। रोलाँकी बात ध्यानसे पढ़ ली। उन्होंने जो चेतावनी दी है, उसके लिए क्या तुम कृपया उन्हें धन्यवाद दे दोगे? तुम बम्बई नहीं आये, यह बहुत अच्छा किया। तुम्हें सबसे पहले शान्तिनिकेतनकी ही चिन्ता करनी चाहिए। तुमने रुस्तमजीके बारेमें टिप्पणी देखी[२] क्या तुम उनके बारेमें कुछ लिखोगे नहीं? उनकी बहुत-सी सीमाओंके बावजूद वे मेरे