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क्या हममें एकता होगी?

कसौटीके रूपमें आगे बढ़कर इसे स्वीकार करते। यदि पूँजीपतियों या शिक्षित लोगोंके बजाय आज मजदूरोंका प्रभाव ही सबसे अधिक होता और सदस्यताके लिए सम्पत्ति अथवा शिक्षा-सम्बन्धी कसौटी सुझाई जाती तो शक्तिशाली मजदूर वर्ग इस सुझावका मजाक उड़ाता, बल्कि उसे अनैतिक भी बताता। कारण, तब वे यह दलील पेश करते कि जहाँ पूँजी और शिक्षा कुछ ही लोगोंके पास है, शारीरिक श्रमकी क्षमता से तो सभी सम्पन्न हैं। हो सकता है यह जो मैंने श्रमके एक प्रकारको अर्थात् हाथकताईको कसौटी बनानेका सुझाव रखा है, वह बिलकुल महत्त्वहीन हो या बहुत विचित्र हो, लेकिन यह न अनैतिक है और न राष्ट्रके लिए किसी प्रकार हानिकर ही। यदि हजारों स्त्री-पुरुष राष्ट्रके लिए श्रम करें---भले ही प्रतिदिन आधा घंटा ही क्यों न करें- -तो यह चीज मेरी समझमें राष्ट्रके लिए निश्चित उपलब्धि है और खादी पहननेकी शर्तके कारण भी किसी दलको कांग्रेसमें प्रवेश करनेमें कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। कांग्रेसमें खादीको पिछले तीन सालसे बहुत ज्यादा महत्त्व दिया जाता रहा है।

निःसन्देह, खादी पहननेको सदस्यताकी कसौटी बनानेके विषयमें सिद्धान्तके आधारपर तो कोई ऐसी अकाट्य आपत्ति की ही नहीं जा सकती, जिसका निवारण ही न किया जा सके। यदि वस्तु-स्थितिको समझनेमें मुझसे बहुत गलती न हुई हो तो मेरा खयाल है कि अगर खादी पहनने और हाथ-कताईको सदस्यताकी शर्त नहीं बनाया जाता तो कुछ अच्छेसे-अच्छे कार्यकर्त्ताओंको भी कांग्रेसमें रहनेसे कोई मजा नहीं आयेगा। इस समय कांग्रेसमें दो दल हैं। एकको स्वराज्य पानेके साधनके रूपमें कौंसिल-कार्यक्रममें कोई विश्वास नहीं है और जबतक देश शान्तिपूर्ण अवज्ञा या असहयोगके लिए तैयार नहीं हो जाता तबतक वह खादी-सम्बन्धी प्रवृत्तियोंसे ही सन्तुष्ट है। दूसरा यह तो कहता है कि खादीके आर्थिक महत्त्वमें उसका विश्वास है, किन्तु साथ ही यह भी मानता है कि कौंसिल-प्रवेशसे यदि स्वराज्य न मिल सके तो इस तरह कमसे-कम उस दिशामें कुछ प्रगति तो की ही जा सकती है और नौकरशाहीकी मनमानीपर थोड़ा अंकुश भी रखा जा सकता है। मुझे तो स्वराज्यवादियोंके साथ झगड़ेसे बचनेका रास्ता यही दिखाई देता है कि उन्हें अपनी राह जाने दिया जाये और वे खादी कार्यक्रममें जितना सहयोग दे सकते हैं, उतना सहयोग उनसे प्राप्त किया जाये। मैं लिबरलों और इंडिपेंडेंटोंसे अनुरोध करता हूँ कि इस वस्तुस्थितिको समझें, जिसे कोई एक व्यक्ति नहीं बदल सकता। हाँ, एक बात हो सकती है: स्वराज्यवादी, लिबरल और इंडिपेंडेंट साथ बैठकर बातचीत करें और यदि वे इस निष्कर्षपर पहुँचें कि खादीमें अब कोई दम नहीं रह गया है और यह सिर्फ मेरी एक सनक-भर है और तब यदि वे मुझे अपनी गलती न भी समझा सकें तो मैं खुशी-खुशी उनके रास्ते से हट जाऊँगा। फिर वे शौकसे इस राष्ट्रीय संगठनको अपने कब्जेमें ले सकते हैं और जिस बातमें देशका सबसे बड़ा हित समझें उसके लिए इसका उपयोग कर सकते हैं; मैं उनके मार्गमें बाधक न बनूँगा। एक प्रमुख स्वराज्यवादीने मुझसे कहा है कि खादी-कार्यक्रमका विफल होना अवश्यंभावी है और स्वराज्यवादियोंका