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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसमें कोई विश्वास नहीं है। मैंने उनसे कहा कि आपकी इस धारणासे मैं सहमत नहीं हूँ, स्वराज्यवादियोंने इस कार्यक्रमको हृदयसे स्वीकार किया है और वे उत्साहपूर्वक इसे कार्यान्वित करेंगे। लेकिन मान लीजिए इन भाईकी भविष्यवाणी अच्छे-खासे कारणोंपर आधारित हो और खादीकी आराधना हमारे सार्वजनिक जीवनमें भेद पैदा करनेवाला तत्त्व हो तो उस हालतमें देशका भ्रम जितनी जल्दी दूर हो जाये उतना ही अच्छा होगा। लेकिन ऐसा हो जानेपर भी जबतक उसमें से मेरा विश्वास नहीं उठ जाता तबतक मुझे तो उससे लगे रहनेकी अनुमति मिलनी ही चाहिए। हाँ, मुझे राष्ट्रकी तमाम प्रवृत्तियोंकी राह रोककर खड़े रहने की छूट नहीं मिलनी चाहिए। इसलिए मैं सच्चे हृदयसे आश्वासन देता हूँ कि यह समिति सभी दलोंको एकताके सूत्रमें बाँधनेके लिए जो भी समुचित उपाय वांछनीय समझेगी, मैं उसके रास्तेमें हठपूर्वक कोई बाधा नहीं डालूँगा। मैं अपने-आपको जानबूझकर ऐसी स्थितिमें रख रहा हूँ जिससे स्वराज्यवादी, लिबरल और इंडिपेंडेंट लोग अपनी-अपनी बातोंसे मुझे प्रभावित कर सकें। मैं बहुत विनम्रतापूर्वक उनके दृष्टिकोणको जानने-समझनेका प्रयास कर रहा हूँ। इसमें मेरा अपना कोई निजी उद्देश्य तो है नहीं। देशकी स्वतन्त्रताके लिए उन्हीं की तरह मैं भी उत्सुक हूँ। हाँ, वहाँतक पहुँचनेका मेरा रास्ता उनसे भिन्न है। लेकिन, अगर मुझसे बन पड़े तो मैं खुशी-खुशी उनका रास्ता अपना लूँगा। तो सभी दल ऐसा रास्ता ढूँढ़ निकालनेके लिए ईमानदारी और लगनके साथ कोशिश करें। एक संयुक्त मंच खोज निकालनेके लिए वे समितिकी कार्यवाही के प्रति विश्वास और संकल्पका रवैया अपनायें। उसकी चर्चाओंके प्रति अपना मन पूर्वग्रहोंसे मुक्त रखें।

एक भाईने पूछा है कि जबतक सर्वदलीय समितिकी जाँचके परिणाम सामने नहीं आते, तबतक कांग्रेसियोंको क्या सदस्यताकी शर्तमें परिवर्तनका विचार स्थगित न रखना चाहिए। मेरा नम्र निवेदन है कि जो कार्यक्रम काफी सोच-विचारकर तय किया गया है, उसे यों ही स्थगित नहीं किया जा सकता। सिर्फ इस भयके कारण कि लिबरल और इंडिपेंडेंट खादी कार्यक्रमको शायद स्वीकार न करें, तीन महीनेके ठोस कामको बरबाद नहीं होने दिया जा सकता। लेकिन, अगर समिति इस नतीजे पर पहुँचे कि खादी कार्यक्रम अव्यावहारिक है और उससे सचमुच एकतामें बाधा पड़ती है तो एक विशेष अधिवेशन बुलाकर सदस्यताकी शर्तमें आसानीसे फेर-बदल किया जा सकता है। मेरे विचारसे तो देश-हितका तकाजा यही है कि हर दल अपने-अपने विश्वास और मान्यताके अनुसार काम करता रहे, लेकिन साथ ही बराबर ऐसा मानकर चले कि उससे गलती हो सकती है, और ऐसा होनेपर वह पश्चात्ताप करने और सही रास्तेपर लौट आनेको भी सदैव तैयार रहे।

[ अंग्रेजी से ]
यंग इंडिया, २७-११-१९२४