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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस असहिष्णुतामें उनका दोष न था। वे तो यह जानते भी न थे कि वे असहिष्णु हो रहे हैं, पर बजाय इसके कि वे अपने पैरोंपर खड़े रहते और अपने ही कार्यक्रमपर अटल श्रद्धा रखते, उन्होंने स्वराज्यवादियोंसे बल प्राप्त करना चाहा, जिस तरह कि हम सब अपनी कमजोरियों को दूर करनेकी इच्छा न रखकर या उसमें असमर्थ होकर, अपने शासकोंसे बल प्राप्त करना चाहते हैं। अपनी सहायता आप न कर सकनेकी यह मनोदशा अब भी कायम है और मेरे और स्वराज्यवादियोंके बीच हुए उस समझौतेसे उनके असन्तोषका यही कारण है। भले ही स्वराज्यवादी वैसे न हों जैसा होनेका वे दावा करते हैं या वैसे ही हों जैसे कि हममें से कुछ लोग मानते हैं, किन्तु क्या अपरिवर्तनवादियोंके मनमें सचमुच स्वराज्यवादियोंके प्रति प्रेम है? यदि उनके अन्दर वह प्रेमभाव है तो वे स्वराज्यवादियोंकी गतिविधिपर चिन्तित और दुखी न होंगे।

फिर अधिकांश अपरिवर्तनवादियोंके पास सिवा खादीके दूसरा कोई काम नहीं है, जिसमें उनका सारा समय लग सके। हिन्दू-मुस्लिम एकता और अस्पृश्यताके विषयमें उनका मनोभाव शुद्ध होना चाहिए। पर इन बातोंके लिए सबको कोई अमली काम मिलना कठिन है। राष्ट्रीय शिक्षालयोंमें भी कुछ ही लोगोंके लिए काम मिल सकता है और सो भी उनमें उसके लिए विशेष प्रकारकी योग्यता होनी चाहिए। पर खादी एक ऐसी चीज है, यदि इसमें विश्वास हो तो सभी उपलब्ध स्त्री, पुरुष और युवकोंका सारा समय इसमें लग सकता है। यदि वे वास्तवमें अहिंसा-परायण हैं तो उन्होंने यह भी जान लिया होगा कि जबतक आरम्भिक रचनात्मक काम न हो जायेगा तबतक सविनय अवज्ञा असम्भव है। सविनय अवज्ञाका अर्थ है असीम कष्ट-सहनकी क्षमता--- सो भी प्रतिपक्षीका संहार करनेकी उत्तेजनाके नशेके बिना। यह तबतक नहीं हो सकता जबतक कि हमारा वायुमण्डल कुछ हदतक शान्तिपूर्ण न हो और जबतक कि हमें इस बातका खासा यकीन न हो जाये कि हिन्दू-मुसलमान, ब्राह्मण-अब्राह्मण और उच्च हिन्दू और अछूत आपसमें लड़ न पड़ेंगे और जबतक हम हाथ-कताई और हाथ-बुनाईका रहस्य इस हदतक नहीं समझ लेते कि उसकी सहायताके बलपर हम सार्वजनिक सहायताके बिना कार्यकर्त्ताओंके निर्वाहके विषयमें निश्चिन्त हो सकते हैं। ऐसे लोगोंकी संख्या चाहे अँगुलियोंपर गिननेलायक हो, चाहे बहुत। यदि हमारी संख्या अधिक होगी तो इससे हमें वायुमण्डलकी शान्तिका निश्चय हो जायेगा। यदि हमारी संख्या कम होगी तो फिर हमें अपने आसपास फैले दावानलको बुझाते हुए मर मिटना होगा। यदि ऐसे अपरिवर्तनवादी असहयोगी हैं भी तो उन्हें इस समझौतेपर झगड़ा करनेका कोई कारण नहीं है, क्योंकि यह और कुछ नहीं ऐसे अटल और अदम्य अपरिवर्तनवादियोंको खोज निकालने की ही एक विधि है। जिनका प्रेम-भाव कड़ीसे-कड़ी कसौटीपर भी सौ टंच साबित हो और विविध रचनात्मक कार्यक्रमके प्रति जिनकी श्रद्धा, आवश्यकता पड़नेपर, तमाम देशकी श्रद्धाहीनताके बाद भी टिकी रहे, उन्हें किसीकी भी सहानुभूतिकी जरूरत नहीं है, बल्कि जो-कुछ सहानुभूति और पुष्टि वे दे सकते हों उसकी जरूरत तो मुझे है और मैं उसके लिए प्रार्थना करता हूँ। यह वे कर सकते हैं सर्वथा अहंकार-शून्य, मौन