पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/४२७

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और अटूट सेवाके द्वारा--ऐसी सेवाके द्वारा जिसे करते हुए वे कभी कोई शिकायत नहीं करेंगे और न किसी पुरस्कारकी आशा करेंगे। उनका पारितोषिक तो उनके कार्यका सिर्फ उनकी अन्तरात्माके द्वारा किया गया अनुमोदन ही होगा। पाठक इस बातका यकीन रखें कि ऐसे कार्यकर्त्ता भी देशमें हैं। उन्हें 'यंग इंडिया' के पृष्ठोंके द्वारा प्रसिद्धि या परिचयकी आवश्यकता नहीं है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २७-११-१९२४

३१३. टिप्पणियाँ

यदि मैं वाइसराय होता

दो अंग्रेजोंने, जो बंगालमें चलाई जा रही दमन-नीतिके पैरोकार थे, मुझसे पूछा कि "यदि आप लॉर्ड रीडिंग या लॉर्ड लिटनकी जगह होते तो क्या करते?" मैंने उनके प्रश्नका उत्तर तुरन्त दिया। परन्तु मैंने देखा कि उससे उन मित्रोंको संतोष न हुआ। उन्होंने समझा कि मेरे लिए इस तरह जवाब देना आसान है, क्योंकि मैं दरअसल तो उनकी जगहपर हूँ ही नहीं। फिर भी चूँकि अपने जवाबपर सब तरहसे विचार करनेके बाद भी वह मुझे ठीक मालूम हुआ है और चूँकि दूसरे कितने ही अंग्रेज ऐसे हो सकते हैं जो उन सज्जनोंकी तरह बंगालके दमनको ठीक मानते होंगे इसलिए मैं अपना उत्तर जरा विस्तारके साथ यहाँ देता हूँ:

यदि मैं वाइसराय अथवा बंगालके गवर्नरकी जगह होता तो पहला काम मैं यह करता कि समाजके विश्वासपात्र भारतीयोंको बुलाता और उनके सामने अपने तमाम कागज पत्र रख देता और वे जो सलाह देते उसके मुताबिक चलता। मैं सुभाषचन्द्र बोसको भी बुलाता और उनपर अपना सन्देह प्रकट करता और वे जो स्पष्टीकरण देते उसे प्रकाशित करता। फिर जिन प्रतिष्ठित भारतवासियोंकी रायमें लेता उन्हींसे पूछकर मैं देशबन्धु दासको बुलाता और उनके दलके जिन लोगोंपर मुझे शक होता उनकी सारी जिम्मेदारीमें उनके सिरपर डाल देता। इस तरह मैं खामोशी के साथ शान्तिकी रक्षाकी व्यवस्था कर देता अथवा अपना भ्रम दूर कर लेता। यह कमसे-कम है जो मैं करता और वह भी तब, जब मुझे अपनी विधान-सभापर विश्वास न होता या उसे बुलानेके लिए वक्त न होता। फिर इससे भी आगे चलकर मैं अपनी इस अत्यन्त दयनीय स्थितिका विचार करता और उसकी असत्यताको तुरन्त समझ जाता। इस प्रकार उस विषम प्रसंगका इलाज करके मैं मूल रोगकी खोज करता, जिसका यह प्रसंग एक लक्षणमात्र है। इसके लिए मैं देशके प्रतिनिधि भारतीयोंको बुलाता और इस बातको जाननेकी कोशिश करता कि ये नवयुवक जो कि सुयोग्य और यों दूसरी तरहसे शान्तिमय हैं, क्यों निर्दय होकर बे-गुनाह लोगोंकी हत्या कर डालते हैं और बिना सोचे-समझे खुद अपनी भी जान खतरेमें