पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/४३

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करुणाजनक

घोलका ताल्लुकेसे प्राप्त निम्नलिखित विवरण पढ़कर पाठकोंको दुःख होगा:[१]

अच्छे दाम मिलते हैं इस कारण सब कपास अथवा सब अनाज बेच डालना अपने हाथों दुःख मोल लेना है। मनुष्य इस तरह आये हुए पैसेकी रक्षा भी नहीं कर सकता और इसलिए अन्तमें उसके हाथमें 'मिट्टीकी-मिट्टी' ही रह जाती है। उसे कमसे-कम अपने उपयोगके लिए पर्याप्त कपास और अनाज अवश्य रखना चाहिए।

सहानुभूतिका अभाव

इसी ताल्लुकेकी दशाका एक और चित्रण नीचे दिया जाता है: [२]

सारा दुःख 'वहाँसे चला आया' में समाहित है। हम कुटुम्बकी भावनासे अधिक आगे नहीं बढ़े हैं, इसलिए गाँवके स्वार्थमें अपना स्वार्थ नहीं देखते। मलाबारके दुःखसे हम सब दुःखी नहीं होते। सारी जनताके विषयमें कुटुम्बकी भावनाका प्रसार करने में मात्र उपदेश बहत कम प्रभावकारी होगा। आरम्भ भले ही उपदेशसे किया जाये; लेकिन इतना ही पर्याप्त नहीं है। बीज बोने-भरसे ही वृक्ष तैयार नहीं हो जाता। उसे खाद और पानीकी जरूरत होती है और जबतक वह बड़ा नहीं हो जाता तबतक बाड़की आवश्यकता भी रहती है, नहीं तो सारा प्रयास निष्फल हो जाता है। ठीक यही बात उपदेशके सम्बन्ध में भी लागू होती है। इसीलिए जब हर गांवमें बैठकर, प्रत्यक्ष कार्यकी मार्फत गाँवोंमें जागृतिका प्रयास किया जायेगा तभी हमें सफलता मिलेगी। यदि हमारा उद्देश्य केवल चन्दा उगाहना है तो अलग बात है। लेकिन जब हम लोगोंके हृदयोंमें प्रवेश करना चाहते हैं; जब उनसे हम सूत प्राप्त करना चाहते हैं तब हमें गाँवोंमें जाकर रहना ही पड़ेगा। जनताके विरुद्ध शिकायत करनेकी बजाय यदि हम अपनी कार्य-दक्षताकी त्रुटिको देख लें तो प्रगति जल्दी हो।

परदेशी बनाम स्वदेशी खाँड

एक सज्जन लिखते हैं कि मैंने इस बारेमें विस्तारसे चर्चा नहीं की है कि "किस खाँडको शुद्ध मानना चाहिए, और किस खाँडको विदेशी मानना चाहिए?" स्वदेशी खाँडको शुद्ध करने के लिए हड्डियों आदिका इस्तेमाल नहीं किया जाता, यह माननेका कोई कारण नहीं है। हिन्दुस्तान प्रतिवर्ष १८ करोड़ रुपयेकी खाँड विदेशोंसे मँगवाता है। मुझे नहीं लगता कि वह अपनी इतनी खाँडकी आवश्यकता थोड़े अर्सेमें खुद ही पूरी कर सकता है। मैं स्वयं तो अधिकतर खाँडका उपयोग नहीं करता। जहाँतक पोषणका सवाल है, इसकी जरूरत बहुत कम है। हमें जितने पोषणकी जरूरत है उतना मीठे फलोंसे मिल जाता है। खाँडका इस्तेमाल करनेका उत्तम तरीका गन्ना

  1. १. यह यहाँ नहीं दिया गया है। इसमें कहा गया था कि किसान पैसेके लिए अपनी तमाम पैदावारको बड़ी तेजीसे बेच रहे हैं
  2. २. यह यहाँ नहीं दिया गया है। लेखकने लिखा था कि लोग अपने लिए पोनेके पानीका कुँआ बनाने के बारेमें भी उदासीन है, अत: "मैं ऊबकर वहाँसे चला आया"।