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३१८. तार: अबुल कलाम आजादको

[२९ नवम्बर, १९२४ या उसके पश्चात्][१]

मौलाना अबुल कलाम आजाद
रिपन स्ट्रीट
कलकत्ता

मोतीलालजी कहते हैं वे नहीं आ सकेंगे। कृपया आप शामिल हों। पंजाबमें आपकी उपस्थिति विशेषरूपसे अपेक्षित।

गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ११७४४) की फोटो-नकलसे।

३१९. टिप्पणियाँ

बी-अम्माँ

बी-अम्माँकी मृत्युके सम्बन्धमें मैं 'यंग इंडिया' में लिख चुका हूँ।[२] उनका धर्मप्रेम अगाध था। धर्मपर उनकी आस्था अनुकरणीय थी। उनके देशप्रेमका मूल धर्मप्रेममें था, और उनकी हिन्दू-मुस्लिम ऐक्यकी इच्छाका कारण भी उनका धर्मप्रेम ही था। बादमें चलकर तो उनकी स्थिति ऐसी हो गई थी कि धर्म, देश और साम्प्रदायिक एकता, तीनों उनके लिए एक ही चीज बन गये थे। उन्होंने देखा कि अगर भारत स्वतन्त्र नहीं होगा तो इस्लाम भी सुरक्षित नहीं रहेगा। हिन्दुस्तान की स्वतन्त्रता विभिन्न जातियोंके बीच एकतापर निर्भर करती है और यह जातीय एकता हिन्दू-मुस्लिम ऐक्यके बिना असम्भव है। ऐसा उन्होंने अपनी आँखोंसे देखा था। इसीलिए इस नेक बहनको मरते दमतक इन्हीं -तीनों बातोंकी रट लगी हुई थी। उनके अन्तिम दिनोंमें उनके दर्शन करनेका सुअवसर मुझे कई बार मिला। "हिन्दुस्तानमें कब एकदिली होगी?" "स्वराज्य कब मिलेगा?" "क्या तबतक मैं जीवित रहूँगी?"--वे मुझसे ऐसे ही सवाल पूछती थीं।

आत्मा अमर है; लेकिन ऐसी शुद्ध आत्माको देखकर तो हम उसके अमरत्वकी स्पष्ट कल्पना कर सकते हैं। आज बी-अम्माँका शरीर नहीं रहा, लेकिन उनके कार्यों और वचनोंका नाश तो, जबतक हिन्दुओं और मुसलमानोंकी हस्ती है, तबतक नहीं हो सकता। जो माता अपने वारिसके रूपमें अली भाइयों-जैसे बेटे छोड़ गई

  1. देखिए पिछले शीर्षककी पाद-टिप्पणी।
  2. देखिए "टिप्पणियाँ", २०-११-१९२४, उपशीर्षक 'बी अम्माँ'।