पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/४३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३९७
टिप्पणियाँ

है, उसका नाश असम्भव है। मैं इन भाइयोंकी मातृ-भक्तिको जैसे-जैसे याद करता हूँ, वैसे-वैसे उनके प्रति मेरा प्रेम बढ़ता जाता है। इन वृद्धा बहनकी बात दोनों भाइयोंके लिए परमादेशके समान थी। वे मानते हैं कि आज वे जो-कुछ हैं, बी-अम्माँकी ही बदौलत हैं।

बी-अम्माँकी मृत्युकी रात अविस्मरणीय है। उस दिन शौकत अली मेरी प्रार्थनामें उपस्थित थे। इसी बीच टेलीफोनपर खबर मिली कि बी-अम्माँकी तबीयत ज्यादा खराब है। इसपर मौलाना साहब डा० अन्सारीको साथ लेकर तुरन्त चल पड़े। प्रार्थनाके बाद मुझे खबर मिली। मैं सरोजिनी देवीको साथ लेकर उनके यहाँ पहुँचा। सारा परिवार बी- अम्माँको घेरकर बैठा हुआ था। सभी अल्लाहके नामका जाप कर रहे थे। मौलाना मुहम्मद अलीकी आँखोंसे आँसू टपक रहे थे, लेकिन उनके मुँहसे मैंने अल्लाहके सिवा दूसरा कोई शब्द नहीं सुना। मौलाना शौकत अली आँसुओंको रोके हुए थे, लेकिन उनकी मुख-मुद्रासे उनका दुःख झलकता था। फिर भी, उनका बुद्धिविवेक मन्द नहीं पड़ा था। आसपास क्या हो रहा है, इसका उन्हें पूरा ध्यान था। मैं दुर्बल हूँ, मुझे ज्यादा समयतक वहाँ नहीं बैठना चाहिए--ऐसा सोचकर उन्होंने जोर डालकर मुझे वहाँसे विदा किया। मेरे पास उनकी ऐसी सजगता तथा विनयके बहुत सारे उदाहरण हैं।

उस छोटी-सी कोठरीमें मैंने जैसा धैर्य तथा भगवद्भाव देखा, उससे मृत्युके समयके हमारे यहाँके रोने-पीटनेके रिवाजकी तुलना किये बिना मैं नहीं रह सका। मैंने बहुत-से हिन्दुओंका मरण देखा है। मैंने अकसर देखा है कि रोगीके शरीरमें अभी प्राण शेष ही रहता है कि उसके लिए राम-नामका जाप करनेके बजाय रोना-धोना शुरू हो जाता है। सभी धर्मोमें मृत्युके बाद रोने-धोनेकी मनाही है। हिन्दू धर्म जन्म और मरणको एक ही स्थितिके दो रूप मानता है। फिर भी, मैंने रोने- धोनेकी जंगली और नास्तिक प्रथा हिन्दुओंके अलावा और किसी धर्मके अनुयायियोंमें नहीं देखी। मैं पारसियोंकी मृत्युके समय उपस्थित रहा हूँ, यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानोंके मरते समय हाजिर रहा हूँ। लेकिन रोना-धोना तो मैंने कहीं नहीं देखा। बी-अम्माँकी मृत्युके समय लोगोंको केवल ईश्वरपर ही आस्था रखते देखकर मुझे बड़ा सन्तोष मिला। मैं चाहता हूँ कि विवेकशील हिन्दू परिवार रोने-धोनेके घातक, जंगली और निरर्थक रिवाजको अधर्मं मानकर तुरन्त बन्द कर दें।

बी-अम्माँके सम्पर्कमें मुझे और भी बहुत-सी बातें देखनेको मिलीं। उन्होंने मृत्युपर्यन्त खादीका ही उपयोग किया और सो भी महीन नहीं, बल्कि मोटी और सामान्य प्रकारकी। उनकी आज्ञा थी कि उनके कफनमें भी शुद्ध खादीका उपयोग किया जाये। मैंने उनकी इस आज्ञाका पालन होते भी देखा। अली भाइयोंके घर मैंने छोटे-बड़े, सबको खादीका ही उपयोग करते देखा।

इन दोनों भाइयोंने अथवा घरके अन्य लोगोंने अपना काम एक क्षणको भी बन्द नहीं किया। मौलाना मुहम्मद अलीका लिखनेका काम बन्द नहीं हुआ। 'हमदर्द' और 'कॉमरेड' के बारेमें वे आदेश-निर्देश देते ही रहे। मौलाना शौकत अलीने अपना