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३२०. विरोधी मित्र

जितना हम अनुकूल मित्रोंसे सीखते है, बहुधा उससे अधिक विरोधी मित्रोंसे सीखते हैं। शर्त सिर्फ यह है कि हममें अपनी आलोचना सुनने और समझनेकी सहिष्णुता और धीरज होना चाहिए। मुझे विश्वास है कि ये दोनों बातें मुझमें हैं। इसीसे मैं अपने कुछ आलोचकोंसे बहुत-सी बातें सीख पाया हूँ। ऐसे एक आलोचकका पत्र नीचे दे रहा हूँ।[१]

मैं मानता हूँ कि यह पत्र निर्मल भावसे लिखा गया है। लेखकको गुस्सा तो अवश्य आ गया है, पर उन्होंने वही लिखा है, जो वे मानते हैं। उन्होंने काकतालीय-न्यायसे काम लिया है। उन्होंने मुझको तार किया था। उसका जवाब उन्हें न मिला। बस, इसीसे उन्हें मेरी सारी करनी निन्द्य मालूम होती है। मैं तो यह मानता आया हूँ कि पत्रोंके जवाब मैं बहुत नियमपूर्वक देता हूँ और अपने आसपास मैंने जिन साथियोंको इकट्ठा किया है, वे दुष्ट नहीं बल्कि सत्यका अनुसरण करनेका प्रयत्न करनेवाले हैं। परन्तु कोई मनुष्य नियमका कितना ही पाबन्द क्यों न हो, वह अपने तमाम पत्रों और तारोंका जवाब नहीं दे सकता। उपवासके समय मिले तमाम पत्रों और तारोंको देखना मेरे लिए अशक्य था। इसी तरह मेरे साथियोंके लिए भी ऐसे प्रत्येक पत्र और तारका जवाब देना अशक्य था। समझमें आने लायक ऐसी सीधी-सी बात भी उक्त पत्र-लेखक न समझ सके, यह दुःखकी बात है।

असहयोग चल रहा है और इधर भारतमें व्यापार भी मन्द है, इसलिए उसकी मन्दीका कारण है, असहयोग। और असहयोगका प्रवर्तक मैं हूँ, इसलिए उसकी जिम्मेवारी मेरे सिर है। यह है पत्र-लेखककी दलील। मैं इससे उलटी दलील पेश करना चाहता हूँ। लोगोंने असहयोगको पूरा-पूरा नहीं अपनाया, उन्होंने चरखा-धर्मका पूरा पालन नहीं किया, इसीसे दुनिया-भरमें आज व्यापारमें जो मंदी चल रही है, उसे भारतको भी भोगना पड़ रहा है। लोग असहयोगका मर्म न समझ पाये, क्योंकि पत्र लेखककी तरह अधीर और उतावले लोग इस देशमें बहुत हैं। इसीसे भारतको दुःख सहन करना पड़ रहा है। यदि वे धीरज रखकर असहयोगका मर्म समझें और उसका पालन करें तो हिन्दुस्तान आज ही मुक्त हो जाये।

फिर, इस सज्जनने बेचारी खादीपर भी प्रहार किया है। उसका जवाब तो बहुत बार दिया जा चुका है। फिर भी, लेखक तथा उनके-जैसे दूसरे अश्रद्धालु लोगोंके लिए पुनः लिखता हूँ। अकेली खादी ही मैली नहीं होती, हर तरहका सफेद कपड़ा मैला होता है। हाँ, खादीके मोटी होनेसे उसे धोनेमें जरा तकलीफ होती है। पर अगर हम पश्चिमी दुनियाकी ऐशो-आरामकी जिन्दगीके असरमें आकर नाजुक न हो

  1. इस पत्रका अनुवाद यहाँ नहीं दिया जा रहा है। इसमें उठाये गये मुख्य मुद्दोंकी चर्चा गांधीजीने जवाब देते हुए ही कर दी है।