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३२१. अब क्या करें?

खादी एक-एक कदम आगे बढ़ती जा रही है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीने मताधिकारमें खादीको शामिल करनेके सुझावको स्वीकार कर लिया है। हमें आशा रखनी चाहिए कि कांग्रेस भी उसे स्वीकार कर लेगी। परन्तु कांग्रेस चाहे स्वीकार करे या न करे, जिन लोगोंकी कातनेकी शक्तिपर विश्वास है, वे तो सूत कातकर ही अपनी सदस्यताको सुशोभित करेंगे। स्वराज्यवादियोंने शुभ हेतुसे ही कताई और खादी के लिबासको मताधिकारमें स्थान दिया है। परन्तु उन्हें उत्साह मिले, उनका विश्वास दृढ़ हो, इसके लिए अपरिवर्तनवादियोंको आगे बढ़कर औरों को भी आगे बढ़ाना चाहिए। अभी तो गुजरातमें कोई २००० स्वेच्छापूर्वक कातनेवाले हैं। कतैयोंकी इस संस्थाको भी कायम रखने में हमें मेहनत पड़ रही है, हमारी योजना-शक्तिकी आजमाइश हो रही है, हमारी कुशलताकी कसौटी हो रही है। इसलिए उसको बहुत आगे बढ़ानेमें भी तो हमारी तमाम शक्तियोंकी परीक्षा होगी। जब बहुत सारे कार्यकर्त्ता इसकी सतत तैयारी करते रहेंगे, तभी हमें सफलता मिलेगी। हजारों लोग अपनी मेहनत तो दे सकेंगे, लेकिन रुई न देंगे, न उन्हें मिल ही सकेगी। वे सब अपने लिए पूनियाँ भी तैयार न करेंगे। इसलिए हर गाँव और हर तालुकेमें अच्छे धुननेवाले होने चाहिए। हर गाँवमें, हर तालुकेमें, अच्छे चरखे और धुनाईके कमठे बनानेवाले होने चाहिए। समितियों या उपसमितियोंको कपासका संग्रह रखना चाहिए। जो प्रान्त यह सब काम अच्छी तरह कर सकेगा, उसीके बारेमें माना जा सकेगा कि उसमें व्यावहारिक शक्ति, तंत्रको चलानेकी शक्ति आ गई है। यदि हम इतना भी न कर सके तो फिर स्वराज्य-तन्त्रका संचालन करनेकी शक्ति कहाँसे लायेंगे? स्वराज्य मिलनेपर ये शक्तियाँ अपने-आप नहीं आ जायेंगी; बल्कि हम देखेंगे कि उन शक्तियों को प्राप्त करनेमें ही स्वराज्य छिपा हुआ है। हमारे कताईके पेशेको नष्ट करके ईस्ट इंडिया कम्पनीने हमपर अपना कब्जा जमाया। अब उसी चीजके जीर्णोद्धारमें हमारा उद्धार है।

आजतक सूत उन्हीं लोगोंने काता है जो चरखे, पूनियाँ आदि प्राप्त कर सके हैं। अब यदि हम बहुत सारे लोगोंसे आधे घंटे की मेहनतकी आशा रखते हों तो समितियोंको ये सब सुविधाएँ जुटानी पड़ेंगी। यदि हमारे अन्दर सच्ची जागृति हो तो हजारों लोगोंको इस अल्प परिश्रमसे सम्पादित होनेवाले महायज्ञमें हाथ बँटाना चाहिए और यदि यह बात सच हो कि चरखेके बिना स्वराज्य नहीं, तो फिर उसमें हजारों लोगोंका शामिल होना कोई आश्चर्यकी बात न होनी चाहिए। मेरी दृष्टिसे तो चरखा ही स्वराज्य प्राप्त करनेका सबसे सुगम उपाय है। वह दूसरी तमाम प्रवृत्तियोंको तेज प्रदान कर सकेगा और बिना उसके दूसरी तमाम प्रवृत्तियाँ निरर्थक साबित होंगी।