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विविध विषय

लोगोंमें सचमुच शक्ति है या नहीं, लोग सचमुच स्वराज्य चाहते हैं या नहीं, इसका अन्दाजा लगानेका हमारे पास दूसरा कोई शान्तिमय उपाय है ही नहीं। बड़े-बड़े सम्मेलनोंमें लाखों आदमियोंके जमा होनेसे स्वराज्य -शक्ति सिद्ध नहीं होती। हजारों लोगोंके चन्दा देनेसे भी वह शक्ति नहीं आती। जहाँ पैसेका उपयोग करनेवाले न हों, वहाँ पैसेकी क्या कीमत? बहुतों के हिन्दी या अंग्रेजी पढ़ने से भी स्वराज्य नहीं मिल सकता। परन्तु चरखा चलानेमें यह शक्ति किस तरह निहित है, यह बात मैं कई बार अनेक प्रकारसे बता चुका हूँ।

यदि चरखा सफल न हुआ तो मेरा निश्चित मत है कि तब भारतके लिए आजादी हासिल करनेका एकमात्र उपाय खूँरेजी ही रह जाता है। केवल विधानसभाओंके द्वारा कभी भी सच्ची स्वतन्त्रता नहीं मिल सकती। यह बात तो हरएक भारतवासीको सूत्र-रूपमें समझ रखनी और रट रखनी चाहिए। फिर तो सिर्फ शक्तिका ही रास्ता रह जाता है। एक तो है शान्तिमय शक्तिका रास्ता। उसमें हमें खुद कष्ट-सहन करना होगा, हमें कुछ रचनात्मक काम करना होगा।

दूसरा है हिंसक शक्तिका रास्ता। उसमें हमें प्रतिपक्षीको दण्ड देना होगा। इस रास्तेको अभी तो सब लोगोंने त्याज्य माना है। हिंसक रास्तेपर चलकर फिलहाल तो भारत कुछ भी नहीं कर सकता। यह इतनी सीधी-सी बात बच्चा भी समझ सकता है।

इसलिए जहाँतक मेरी दृष्टि जाती है, वहाँतक यदि मुझे चरखा ही चरखा दिखाई दे तो पाठक मुझे माफ करेंगे और जो बात मुझे दिखाई देती है यदि वही उन्हें भी दिखाई दे तो मैं उन्हें इस भव्य यज्ञमें अपना पूरा योग-दान करनेके लिए निमन्त्रण देता हूँ।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ३०-११-१९२४

३२२. विविध विषय

खादी भण्डार

बम्बईमें गुजरात प्रान्तीय समितिका खादी भण्डार कालबादेवीकी सड़कपर है। समितिकी सुविधा विचारसे इस भण्डारको श्री जमनालालजीने अपने हाथमें ले लिया है। पहले श्री जमनालालजीका विचार इस भण्डारको अधिक समयतक चलानेका न था। लेकिन भण्डार एकाएक बन्द कर देनेसे ज्यादा नुकसान होनेका भय था और जहाँ यह भण्डार है वहाँ फिलहाल ऐसे भण्डारकी जरूरत महसूस होती है, इस कारण यह अभी चालू रखा गया है। इस भण्डारको चलानेमें लाभ कमानेकी दृष्टि नहीं है। इसलिए मैं इस मुहल्लेमें रहनेवाले ऐसे लोगोंको जिन्हें खादी-प्रवृत्तिमें श्रद्धा है, सलाह देता हूँ कि वे खादी भण्डारमें जायें और यदि उन्हें उसका माल और मालके दाम अनुकूल जान पड़ें तो उसे प्रोत्साहन दें ।