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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्वर्गीय दलबहादुर गिरि

स्वर्गीय दलबहादुरजी गिरिके नामपर दानमें दो रकमें प्राप्त हुई हैं। बहन जरबानु प्यारेलालने अपनी ओरसे १०० रुपये भेजे हैं और कलकत्ताके एक सज्जनने भिन्न-भिन्न सज्जनोंसे चन्दा करके ८० रुपये भेजे हैं। यह सम्भव है कि स्वर्गीय दलबहादुर गिरिके परिवारके लोग आश्रममें आ जायें। यदि ऐसा हुआ तो इस रुपयेका उपयोग उनके पोषणके लिए किया जायेगा। अगर वे आश्रममें नहीं आये तो वे जहाँ भी रहेंगे, यह रकम वहाँ भेज दी जायेगी। उन्हें थोड़ी-सी मदद तो बंगाल प्रान्तीय समितिकी ओरसे भी दी गई है। इस परिवारकी जैसी भी हालत होगी मैं पाठकों को उससे अवगत करता रहूँगा। इस बीच किसीको मुझे अधिक धन भेजनेकी जरूरत नहीं है। अगर जरूरत होगी तो मैं पाठकोंको सूचना दूँगा।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ३०-११-१९२४

३२३. भाषण: गुजरात राष्ट्रीय विद्यापीठ, अहमदाबादमें

३० नवम्बर, १९२४

गुजरात राष्ट्रीय विद्यापीठके छात्रोंके सामने भाषण करते हुए श्री गांधीने कहा कि कांग्रेस द्वारा असहयोगको स्थगित करनेके प्रस्तावका मतलब राष्ट्रीय शिक्षा संस्थाओंको बन्द करना या उन्हें सरकारी विश्वविद्यालयोंसे सम्बद्ध करना नहीं है। इन संस्थाओंका अस्तित्व तो अब वास्तविक तथ्य बन चुका है और अब यह प्रान्तीय कांग्रेस कमेटियोंके ऊपर है कि वे उन्हें बरकरार रखें। मैं तो कांग्रेस द्वारा इस आशयका एक प्रस्ताव पास किये जानेका सुझाव दूँगा कि इन संस्थाओंको बनाये रखा जाये। यहीं नहीं, मैं तो यह सुझाव भी दूँगा कि जहाँ जनता इच्छा प्रकट करे, वहाँ ऐसी नई संस्थाएँ स्थापित भी की जायें। अगर कहीं ऐसे छात्र हों जो एक राष्ट्रीय आवश्यकताके रूपमें असहयोगमें विश्वास नहीं रखते थे, लेकिन जिन्होंने कांग्रेसके प्रस्तावके प्रति निष्ठाभावके कारण ही सरकारी शिक्षा संस्थाओंको छोड़ दिया था तो वे किसी कलंकका भय रखे बिना सरकारी संस्थाओंमें फिरसे जानेको स्वतन्त्र हैं। असहयोग आन्दोलनके प्रस्तावित स्थगनसे देशको पक्के असहयोगियोंकी शक्ति जाननेका अवसर मिलेगा। एक राष्ट्रीय कार्यक्रमके रूपमें असहयोग स्थगित हो सकता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि व्यक्ति और यहाँतक कि प्रान्त भी असहयोगको स्थगित कर दें। शर्त इतनी ही है कि यदि वे उसे जारी रखना चाहते हों तो उन्हें विद्वेष या आन्तरिक कलह उत्पन्न किये बिना ही चलाना चाहिए। प्रत्येक मानव जीवनकी ही तरह इस आन्दोलनमें भी उतार-चढ़ावके दौर आ सकते हैं, लेकिन