यह स्थायी है और जबतक सरकारकी मौजूदा प्रणाली रहेगी तबतक वह अमुक व्यक्तियोंमें या व्यक्ति-समूहों में किसी-न-किसी रूपमें जारी रहेगा।
एक प्रश्नका उत्तर देते हुए श्री गांधीने कहा कि जिस हृदतक राष्ट्रीय स्कूल हिन्दू-मुस्लिम एकताके वांछित स्वरूपके, तथाकथित अछूतों और सवर्ण हिन्दुओंके बीच सही सम्बन्धोंके या चरखेका क्या अर्थ है, इसके जीते-जागते विज्ञापन हैं, उस हदतक वे राष्ट्रीय राजनीतिके अंग हैं। भविष्यका इतिहासकार असहयोगी शिक्षा संस्थाओंकी प्रगतिका माप इन संस्थाओंमें इन्हीं तीन बातोंकी प्रगतिसे करेगा। इन तीन बातोंको स्वराज्यवादी और अपरिवर्तनवादी दोनों समान रूपसे अपना ध्येय मानते हैं। जो फर्क है वह महज इनपर जोरके बारेमें है। आपको ऐसा नहीं मानना चाहिए कि स्वराज्यवादियोंने खद्दर-कार्यक्रममें कोई विश्वास न होते हुए भी उसे स्वीकार किया है। जबतक कोई सबूत न हो तबतक यह विश्वास करना अन्याय होगा कि किसी दलने कोई बात यों ही सिर्फ कहने के लिए कह दी है। खद्दरको टाल देनेका कोई सवाल ही नहीं है। मुझे यह कहनेमें कोई हिचक नहीं है कि जिन छात्रोंको खद्दर कार्यक्रममें विश्वास नहीं है, वे राष्ट्रीय पाठशालाओं और विद्यालयोंमें रहकर अपना समय बरबाद कर रहे हैं।
न्यू इंडिया, १-१२-१९२४
३२४. पत्र: मगनलाल गांधीको
गुरुवार [ १ दिसम्बर, १९२४ से पूर्व ][१]
उस राज [ मिस्त्री ]का मामला तुमने समझ लिया होगा।
१. अगर वह पंच-फैसलेके लिए तैयार हो तो मावलंकरसे सलाह-मशविरा करना और वकीलसे वैसी व्यवस्था करनेके लिए अनुरोध करना।
२. अगर इसके लिए तैयार न हो तो कानूनकी रीतिके अनुसार जो जवाब देना उचित हो मावलंकरसे पूछकर देना।
३. अगर अदालतमें हाजिर होने की जरूरत पड़े तो हाजिर हो जाना और वादीसे आवश्यक सवाल-जवाब करना। जवाब धीरजके साथ देना। मुद्देसे बाहर मत जाना।
४. मामला हमारे पक्षमें ही तय होगा, ऐसी सम्भावना है। अगर ऐसा न हो तो अपील करना।
५. फैसला अगर हमारे पक्षमें हुआ तो हमें खर्च भी मिलेगा। वह तो हम ले नहीं सकेंगे, क्योंकि अगर फैसला हमारे पक्षमें हुआ तो खर्चेकी रकम वसूल
- ↑ श्री मगनलाल गांधीने इसके प्राप्त होनेकी तिथि १ दिसम्बर, १९२४ लिखी है।