छोटेलालसे जो-कुछ कहना चाहिए था, वह उससे मैंने कल रातको कह दिया है। छगनलालको तो कहा ही है। लेकिन मुझमें ऐसी शक्ति नहीं है कि जो बात मैं एक बार कह दूँ उसका प्रभाव लोगोंपर हमेशा बना रहे। मुझे लोगोंके समीप निरन्तर बने रहने की जरूरत रहा करती है। मैं आश्रममें लम्बे समयतक रहकर आश्रम के कामकी देखभाल करना चाहता तो हूँ लेकिन ईश्वर मेरी यह इच्छा पूरी कब होने देता है? उसपर किसका बस है?
बापू
इसके साथ शम्भुशंकरको उत्तर है।
गुजराती प्रति (सी० डब्ल्यू० ६०४४) से।
सौजन्य: राधाबहन चौधरी
३२६. पत्र: रमाबाई पट्टणीको
साबरमती
मार्गशीर्ष सुदी ५ [१ दिसम्बर, १९२४][१]
आपका स्नेहपूर्ण पत्र मिला। ८-९ जनवरीको परिषद्में[२] शरीक होना है। उसके बाद आप मुझे कुछ दिनोंके लिए किसी शान्त स्थलमें ले जा सकती हैं। मुझे ज्यादासे-ज्यादा १४ तारीखको यहाँ पहुँच जाना है। मेरे वहाँ पहुँचनेके बाद सब प्रबन्ध हो ही जायेगा। खादी-प्रचारमें आप-जैसी बहनोंकी मददकी आशासे ही मुझे काठियावाड़में आने और परिषद्का अध्यक्ष पद ग्रहण करनेका लोभ हो आया। यदि मेरी यह आशा फलीभूत हुई तो किसी शान्ति स्थलपर जाकर मुझे जितनी शान्ति मिल सकती है, उसकी अपेक्षा इससे कहीं ज्यादा शान्ति मिलेगी। आशा है, आपका स्वास्थ्य अच्छा होगा।
मोहनदास गांधी वन्देमातरम्
भावनगर
गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ३१८३) से।
सौजन्य: महेश पट्टणी