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३२९. टिप्पणियाँ

बेलगाँवमें

मैं चाहता हूँ कि कार्यकर्त्तागण यह समझ लें कि मैं कांग्रेसके आगामी अधिवेशनका वैसा ही सभापति होऊँगा जैसा कि एक कामकाजी आदमी एक कामकाजी सभाका सभापति होता है। कांग्रेसका प्रदर्शनात्मक पहलू तो उसकी प्रदर्शनी तथा ऐसी ही अन्य चीजोंमें दिखाई देगा। किन्तु यदि हम लोग सचमुच कुछ ठोस काम करना चाहते हैं तो हमें पहलेसे उसका एक कार्यक्रम ही बना लेना चाहिए और सबको उसमें शरीक होकर सहायता देनी चाहिए। यह तभी हो सकता है जब वे समझौतेको समझें, पसन्द करें और पूरे दिलसे मान लें। मुझे यह पसन्द नहीं है कि स्वराज्यवादी हों या अपरिवर्तनवादी, कोई भी इसे केवल अपनी वफादारीकी भावनाके कारण मान लें। यह समझौता दिखानेके लिए नहीं है। दूसरोंपर असर डालनेके लिए नहीं, किन्तु अपने ही लोगोंपर असर डालनेके लिए यह समझौता हुआ है। केवल ऊपरी मनसे मंजूर करना तो कुछ न करनेसे भी बदतर होगा। मंजूरी के साथ आन्तरिक विश्वास और सहयोगका होना आवश्यक है। कुछ स्वराज्यवादियोंने सदस्यताकी शर्तको न बदलनेकी प्रार्थना की है। सिवा इसके मैंने स्वराज्यवादियोंकी ओरसे अबतक इस समझौतेका कोई विरोध नहीं पाया है। किन्तु अपरिवर्तनवादी तो मुझपर बड़े रोष और दुःखके साथ अपनी नाराजगी प्रकट कर रहे हैं। जहाँतक मुझसे हो सकता है, मैं इन पृष्ठोंमें, स्थितिको समझानेका और शंकाओंके समाधानका प्रयत्न करता हूँ। तब भी मैं यह जानता हूँ कि पूरी तौरसे खुलकर बातें करनेके समान संसारमें और कुछ भी नहीं है। अ० भा० कांग्रेस कमेटीकी बैठकमें मैंने घंटे भरतक अपरिवर्तनवादियोंसे बात की थी। पर उस एक घंटेमें क्या होना था? इसलिए २० दिसम्बरका दिन, बेलगाँव में अपरिवर्तनवादियोंसे मिलकर विचार करनेके लिए अलग निकालकर रखे देता हूँ। मैं उस दिन सुबह बेलगाँवमें पहुँच जानेकी उम्मीद रखता हूँ। मैंने श्रीयुत गंगाधरराव देशपांडे को लिखा है कि मेरे स्वागतमें किसी प्रकारकी धूमधाम न की जाये। इसमें समय नष्ट करना ठीक नहीं है। मैं सभी अपरिवर्तनवादियोंसे, जो चर्चामें भाग लेना चाहते हैं, इस खानगी सभामें आनेका अनुरोध करता हूँ। साथ ही मैं उन्हें इतना पहले बेलगाँवमें भीड़ लगा देनेसे रोकना भी चाहता हूँ। २६ ता० के पहले कांग्रेसकी बैठक शुरू नहीं होगी। खिलाफत परिषद् भी २४ ता० से पहले शुरू नहीं होगी। नेशनल कन्वेंशन भी इससे पहले न हो सकेगा। इसलिए मैं यह उचित समझता हूँ कि हरएक प्रान्त अपने दो-दो, तीन-तीन प्रतिनिधि चुनकर भेजे जिन्हें और लोगोंके भी विचारोंकी पूरी जानकारी हो। २० तारीखको तीसरे पहरका सारा समय विचार-विनिमयके लिए दिया जा सकता है। यदि जरूरत पड़ी तो २१ तारीखको भी बहस चल सकती हैं। मैं देशबन्धु दास और पण्डित मोतीलाल नेहरूसे स्वराज्य-