पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/४४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४१०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वादियोंके साथ भी अपनी ऐसी चर्चाकी आवश्यकताके विषयमें पत्र-व्यवहार कर रहा हूँ। यदि वे उचित समझें तो मैं बड़ी खुशीसे २१ तारीखका एक हिस्सा केवल स्वराज्यवादियोंको ही दूँगा। जहाँतक प्रतिनिधियोंकी उपस्थितिका सम्बन्ध है, मैं आशा करता हूँ, दोनों दलोंकी ओरसे पूरी-पूरी उपस्थिति होगी। क्योंकि जहाँतक स्वयं मेरा सम्बन्ध है, मैं दलबन्दीके आधारपर बहुमत द्वारा तो कोई भी महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव पास कराना नहीं चाहता, किन्तु मैं प्रतिनिधियोंके रुखको जरूर जान लेना चाहता हूँ। यदि वे केवल उपेक्षा और उदासीनताके कारण या त्रस्त होकर कांग्रेस अधिवेशनमें न आयेंगे तो वे अपने कर्त्तव्यके पालन में चूकेंगे। जिसे राष्ट्रीय कार्यमें अपना समय देना नामंजूर हो उसे प्रतिनिधि नहीं बनना चाहिए। जहाँतक मनुष्य के बसकी बात है, कांग्रेस अधिवेशनमें उपस्थित होना और अगले वर्षके लिए कांग्रेसकी नीति निर्धारित करनेमें सहायता देना उनका कर्त्तव्य है।

अडयारमें हाथ-कताई

पाठकों को मैडम डी मैंजियरली द्वारा डा० बेसेंटको लिखा गया पत्र और उसपर डा० बेसेंटकी टिप्पणी पढ़कर खुशी होगी। इसे मैं 'थियोसॉफिस्ट' के चालू अंकसे नीचे उद्धृत कर रहा हूँ:[१]


विश्वासघात?

देशमें कुछ ऐसे लोग हैं जिन्हें देशकी नीतिमत्ताका ध्यान रहता है। यह एक शुभ चिह्न है। एक मित्र जो कि स्वयं लिबरल दलवाले नहीं हैं, पूछते हैं कि अ० भा० कांग्रेस कमेटी द्वारा स्वराज्यवादियों और गांधीजी के बीच हुए समझौतेका स्वीकार किया जाना क्या सर्वदलीय परिषद् के साथ विश्वासघात नहीं है? मेरी नम्र रायमें इसका उत्तर है--'हरगिज नहीं'। क्योंकि यह समझौता ही तो इस निमन्त्रणका आधार है। उसके पहले कांग्रेसके दोनों दलोंका मिल जाना आवश्यक था। जबतक कांग्रेसका अधिवेशन न हो तबतक अ० भा० कां० कमेटी ही उस एकताको प्रदर्शित कर सकती है। जहाँतक कांग्रेसके दोनों दलोंका सम्बन्ध है, यह समझौता अन्तिम है। पर किसी बाहरी दलके चाहनेपर इसका विरोध करने, यहाँतक कि पुनर्विचार तक करनेकी गुंजाइश है। उस विरोधका सफल होना तभी सम्भव है जब वह दोनों दलोंको युक्तियुक्त जँचे। किसी दलसे यह नहीं कहा जा रहा है कि एकताके नामपर वह अपने-अपने सिद्धान्तोंको छोड़ दे। अ० भा० कां० कमेटी द्वारा पुष्ट किया गया समझौतेवाला प्रस्ताव ऐसा कोई आखिरी निर्णय नहीं है कि या तो यही मंजूर कीजिए या कुछ भी नहीं। समझौतेके अतिरिक्त भी ऐसी कितनी ही बातें हैं जिनपर सभी दलोंको विचार करना पड़ेगा। कांग्रेसवालोंसे यह आशा नहीं की जानी चाहिए कि वे

  1. पत्र और टिप्पणी यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं। मैडम डी मैंजियरलीने डा० बेसेंटको अपने पत्रमें सूचित किया था कि डा० बेसेंटकी अनुपस्थितिमें जब वे लन्दन गई हुई थीं, उन्होंने अडयारमें कताई सीख ली है और उनकी देखा-देखी लोगोंने भी उसे सीखा है और अब वे आसपास के गाँवोंमें ग्रामोद्योगोंको बढ़ावा देनेका कार्यक्रम चला रही हैं।