पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/४४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४११
टिप्पणियां

अपने सिद्धान्तों व नीतिको सर्वदलीय परिषद्के निर्णयतक मुल्तवी रखेंगे। पर हाँ, उनसे यह उम्मीद जरूर की जाती है कि वे प्रत्येक प्रश्नपर बिना पहलेसे कोई धारणा बनाये खुले दिमागसे विचार करेंगे। उन्हें परिषद् में प्रस्तुत प्रत्येक बातपर विचार करनेके लिए तैयार रहना है। इस बहुत ही जरूरी शर्तको मानकर सभी दलोंके लिए यह बेहतर होगा कि वे अपने सिद्धान्त, नीति तथा इरादोंको जाहिर कर दें। मनमें किसी प्रकारका दुराव नहीं रहना चाहिए। समझौतेके प्रस्तावको स्वीकार किये बिना आगे बढ़ना एक प्रकारका दुराव ही होता। हिन्दू-मुसलमानोंमें अच्छा सम्बन्ध स्थापित करनेके लिए जिस सहिष्णुताके भावको पैदा करने की जरूरत है और जिसकी कोशिश भी की जा रही है, सहिष्णुताका वही भाव यहाँ भी हमारा लक्ष्य होना चाहिए। हमारे अन्दर गहरे मतभेदोंके होते हुए भी यदि हम सबका ध्येय एक ही हो तो हमें मेल-जोलसे रहना और परस्पर आदरभाव रखना है। यह दुर्भाग्य की बात होगी, लेकिन हो सकता है, हम लोगों को यह दिखाई दे कि हम सबका लक्ष्य एक नहीं है, स्वराज्यका कोई भी पहलू सबको एकसा मान्य नहीं है या हम सबके हित एक ही नहीं हैं। उस हालतमें मैं कहूँगा कि कांग्रेसके मंचपर सभी दलोंका एक होना असम्भव है। परन्तु इसका अर्थ यही होगा, मानो इस दरिद्र भारतके लिए स्वराज्य असम्भव है। क्योंकि अन्तमें तो स्वराज्य प्राप्त होनेपर भी सभी दलोंको एक ही स्वराज्य संसदमें काम करना पड़ेगा। कांग्रेसको ऐसी संसदका पूर्वरूप या नमूना बनाना ही हमारा हेतु है।

एक बड़ी चूक

पण्डित मोतीलालजी कहते हैं कि हालमें अ० भा० कां० कमेटीकी बैठक में दिये गये मेरे व्याख्यानकी[१]जो रिपोर्ट अखबारोंमें छपी है उसमें एक आवश्यक अंश छूट गया है। वह है स्वराज्यदलके अपनी सहायताके लिए प्रार्थना करनेके औचित्यपर प्रकट किये गये मेरे विचारोंसे सम्बन्ध रखनेवाला अंश। बेशक वह अंश आवश्यक था और मैं उसका छपना जरूरी समझता था। इसलिए मैं खुशीसे उसका भाव यहाँ देता हूँ:

स्वराज्यवादियों को अपनी ताकत बढ़ानेका, अपना संगठन करनेका तथा देशसे, जिसमें अपरिवर्तनवादी भी शामिल हैं, समर्थनकी अपील करनेका पूरा अधिकार है। यदि असहयोग स्थगित कर दिया गया और कांग्रेसमें स्वराज्यवादियोंको भी वही दर्जा मिला जो कि अपरिवर्तन-वादियोंका है, तब तो अपरिवर्तनवादी ऐसे प्रचारका विरोध नहीं कर सकेंगे। अवश्य ही उस हालतमें ऐसा विरोध करना अनुचित होगा। मेरी समझमें असहयोगको स्थगित करने का सही तात्पर्य यही होगा। इसका मतलब यह नहीं है कि कट्टर अपरिवर्तनवादी स्वराज्य दलमें मिल जायें। देशबन्धुने मुझे स्वराज्य दलमें शामिल हो जानेको कहा था और यह कहनेका उन्हें पूरा अधिकार भी था। मैंने उनसे कहा कि जबतक मुझे स्वराज्य दलके कार्यक्रममें विश्वास नहीं है, तबतक मैं स्वराज्यदलमें योग नहीं

  1. देखिए "भाषण: अ० भा० कांग्रेस कमेटी, बम्बई में", २३-११-१९२४।