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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दे सकता। मैं बाहर रहकर ही उन्हें सहायता दे सकता हूँ। इसी प्रकार कोई भी सच्चा अपरिवर्तनवादी उन्हें योग नहीं दे सकता। परन्तु जो सिर्फ इसलिए अलग खड़े हैं कि कांग्रेसका कार्यक्रम उन्हें मना करता है, वे अपरिवर्तनवादियों की ओरसे किसी तरहकी बाधाके बिना स्वराज्य दलमें मिल सकते हैं। अपरिवर्तनवादी विधान सभाओंका जबानी विरोध नहीं कर सकते। बल्कि उनके द्वारा चरखेपर अविराम कार्य ही उनका सच्चा प्रचार कार्य होगा। स्वराज्यवादियोंके पास तो चरखा और विधान सभाएँ दोनों वस्तुएँ हैं, किन्तु अपरिवर्तनवादियों का अवलम्ब तो केवल चरखा ही है।

प्रागजी देसाई

यह पता चलनेपर कि श्री प्रागजी देसाई, जिन्हें सूरत के 'नवयुग' नामक पत्रके सम्पादकके नाते कुछ दिन हुए कठिन श्रमके साथ दो वर्षकी कैद की सजा दी गई थी, कमजोर होते जा रहे हैं और उन्हें समुचित भोजन नहीं दिया जा रहा है, मैंने जेलके मुख्य अधीक्षकको पत्र लिखकर[१] श्री देसाईकी हालत के बारेमें पूछताछ की। उन्होंने निम्नलिखित उत्तर दिया है:

मैंने श्री पी० के० देसाईके बारेमें लगाये गये आरोपोंकी जाँच की है।

(१)यह सच है कि जेलमें दाखिलेके वक्त उनका वजन १३८ पौंड- था और अब घटकर १२८ पौंड हो गया है। लेकिन चूँकि वे कुछ ज्यादा स्थूलकाय हैं, अतः इसे शिकायतका आधार मानना कठिन है। उनकी लम्बाईके आदमीका जो सामान्य वजन होना चाहिए उससे वे १७ पौंड ज्यादा हैं।

(२) उन्हें शेष कैदियोंसे अलग नहीं रखा गया है। एक रातवाला कैदी चौकीदार सदा उनके साथ रहता है और दोनों साथ-साथ काम करते हैं। कैदियोंसे उनका फासला इतना है कि वे उन्हें देख सकते हैं।

(३) सुपरिटेंडेंट इस बातसे इनकार करता है कि कैदियोंको नियमतः घासपात मिली और अखाद्य सब्जी खानेको दी जाती है। चूँकि हैदराबाद जेलमें एक बड़ा और बहुत अच्छा बाग है इसलिए ऐसा होनेका कोई कारण भी नहीं हो सकता।

(४) उन्हें सख्त (सादी नहीं) कैदकी सजा दी गई थी इसलिए वे जेलमें क्या काम करेंगे इसका चुनाव करनेकी अनुमति उन्हें नहीं दी जा सकती।

(५) हैदराबाद सेन्ट्रल जेलके वर्तमान मेडिकल अफसर भारतीय चिकित्सा सेवाके एक भारतीय अधिकारी हैं जिनपर सब कैदियोंके स्वास्थ्य और शारीरिक स्थितिकी आवश्यकतानुसार भोजनकी समुचित व्यवस्था करने के मामलेमें पूरा

  1. देखिए "पत्र: कर्नल मेलको", १३-११-१९२४।