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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिए प्रति माह २,००० गज सूत कातनेको वचनबद्ध है। मैं आशा करता हूँ कि ऐसे क्लब सारे देशमें स्थापित किये जायेंगे।

शिक्षाके बारेमें बड़ो दादाके विचार

बड़ो दादाने 'यंग इंडिया' में प्रकाशनके लिए निम्नलिखित टिप्पणी मुझे भेजी है:

१८ वीं शताब्दीके एक विख्यात अंग्रेज कविने कहा है:

अल्प ज्ञान खतरनाक चीज है।

इसमें में इतना और जोड़ता हूँ कि हमारे देशवासियोंमें जो शिक्षा फैल रही है वह अल्प ज्ञानसे भी बुरी है। भारतीयों के हृदयमें जिस सच्चे ढंगका ज्ञान बसा हुआ है, वह तो ईश्वरका और प्राचीन कालके उन ऋषियोंका वरदान है जिन्होंने ईश्वरोपासनामें अपना सारा जीवन लगा दिया। यह ज्ञान सकारात्मक ज्ञान है, जबकि वर्तमान शिक्षा, जिसमें हृदयका सम्पूर्ण अभाव है, निषेधात्मक ज्ञान प्रदान करती है। निषेधात्मक ज्ञान प्राप्त करना सकारात्मक ज्ञानको खोनेके बराबर है---१०० तो---१ से भी सौगुना कम है। इसलिए वर्तमान भारतमें अत्यन्त उच्च आधुनिक शिक्षा प्राप्त कोई व्यक्ति भारत माताके उस सच्ची शिक्षा प्राप्त बेटेके मुकाबले वास्तवमें अज्ञानी ही है जिसने भले ही कभी स्कूल या कालेजकी ड्योढ़ी भी न लाँघी हो।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ४-१२-१९२४

३३०. ध्वजको झुकाया तक नहीं

अपरिवर्तनवादियोंकी उलझन ज्योंकी-त्यों बनी हुई है। उनमें से कई अच्छेसे-अच्छे लोग, जिनकी सम्मति और सहकारिताको मैं अन्य सभी चीजोंसे अधिक मूल्यवान् समझता हूँ, किकर्त्तव्यविमूढ़ हो गये हैं। उन्हें लगता है कि मैंने एक ऐसे समझौतेके लिए जिसकी तुलना अनेक टुकड़ोंको जोड़कर तैयार की हुई चीजसे की जा सकती है, अपने जीवनव्यापी सिद्धान्तोंको छोड़ दिया है। इस आशयका एक पत्र मैं नीचे उद्धृत करता हूँ:

अखबारी रिपोर्टके अनुसार आपने कहा है कि स्वराज्य दलवालोंके साथ लड़ाई करनेकी शक्तिके अभावमें आप फिलहाल धीरजसे काम ले रहे हैं और चुप बैठे हैं। परन्तु ऐसा क्यों? सत्य और अहिंसाका तकाजा तो यह है कि आप हम लोगोंको एकत्र रखकर, स्वराज्य दलके या कांग्रेसके बाहर हमारी पताका फहराते रहिए--किसीके प्रति शत्रुभावसे नहीं, बल्कि जैसा कि हजरत मुहम्मदने किया था, उसी तरह। उनके अनुयायी घटते-घटते केवल तीन ही