पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/४५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४१५
ध्वजको झुकाया तक नहीं

रह गये थे और उन्हें सिर्फ परमात्माकी ही शक्तिका भरोसा करना पड़ा था। निस्सन्देह विपक्षियोंसे हार मानने तथा उनकी सहायता करनेमें आपका तो व्यक्तिशः लाभ ही है, परन्तु हमारे कार्यको इससे बड़ी गहरी हानि पहुँचती है; क्योंकि आप तो असहयोगियोंको संयुक्त रूपसे न तो अपनी ध्वजा फहराते रहने के लिए कहते हैं और न फहराने ही देते हैं। अध्यात्म-प्रेमी कोई भी व्यक्ति ऐसी राजनीतिमें दिलचस्पी नहीं रख सकता, जो न तो सत्य और अहिंसाकी वृद्धि ही करती है और न उनसे पोषण ही ग्रहण करती है। कोई भी बनावटी एकता ईश्वरको आकर्षित नहीं कर सकती, क्योंकि ऐसी हालतमें किसी सरकारके साथ लड़ाई अधार्मिक हो जाती है। इसके अलावा स्वराज्य दलवालोंकी अमलदारीमें आतुर आदर्शवादियोंकी हिंसात्मक प्रवृत्तियोंको शुद्ध करनेके लिए ऐसी कोई शक्ति नहीं रह जायेंगी, जैसी कि आपके उच्च नैतिक आदर्शवादको और धर्मकी भावनासे प्रेरित प्रयत्नकी अमलदारीमें थी। अब तो उन्हें [असहयोगियोंको] निरी निष्फलता तथा पूर्ण निराशाका ही मुकाबला करना होगा।

इन मित्रके विचार बहुत-से असहयोगियोंके विचारोंका प्रतिनिधित्व करते हैं। वे खुद भी इस आन्दोलनकी ओर इसकी धार्मिकताके ही कारण झुके थे। इसलिए मैंने उनके इस सन्देशको बार-बार गौरसे पढ़ा है। लेकिन मेरा खयाल है कि उन्होंने अपनी यह राय, मेरे भाषणोंको मनमाने तौरपर काट-छाँटकर तैयार की गई और अकसर गलत रिपोर्टोंपर ही कायम की है और यहीं मेरे लिए आशाप्रद बात है। वे खुद परिषद् में उपस्थित न थे। वे बम्बईमें भी नहीं थे। किसी हलचलकी गतिविधिको केवल अखबारोंके विवरणके आधारपर समझ लेना अत्यन्त कठिन है। मैंने वह रिपोर्ट नहीं देखी जिसका जिक्र मित्र महाशयने किया है। "स्वराज्य दलके साथ लड़ने" की बातका अर्थ, यदि इन शब्दोंको उनके संदर्भसे विच्छिन्न कर दिया जाये तो मेरे अभीष्ट आशयसे उलटा भी लगाया जा सकता है। अब मैं इसका खुलासा किये देता हूँ। मेरा मतलब यह है कि यदि स्वराज्य दलवालोंको मेरे विचारोंके सम्बन्धमें गलतफहमी है, यदि अपरिवर्तनवादी अहिंसाकी लड़ाई, जिसके मूलमें ही विनयकी भावना पड़ी हुई है, जिस भावसे छेड़ी जा सकती है, उसे समझ नहीं पाते, यदि सरकार इस लड़ाईका ऐसा लाभ उठाती है जिसका मैंने विचार भी नहीं किया है या यदि ऐसे संग्रामके लिए आवश्यक वायुमण्डलका अभाव है तो जाहिर है कि मैं स्वराज्य दलवालोंसे लड़ नहीं सकता। पर वास्तवमें हुआ ऐसा है कि ये सब बातें थोड़ी या बहुत हमारे सामने हैं। इसके सिवा यह भी याद रखना चाहिए कि मेरे नजदीक अपने कार्यकी सुरक्षा संख्या-बलपर कभी अवलम्बित नहीं रही है। मेरी योजनाओंके जल्दी कार्यरूपमें परिणत किये जानेके रास्तेमें शायद मेरी यह मानी जानेवाली सर्वप्रियता ही सबसे बड़ी बाधा होती आई है। जिन लोगोंने बम्बई और चौरीचौराके दंगोंमें भाग लिया था, यदि वे मेरे लिए बिलकुल अजनबी होते और उन्होंने अपनेको अहिंसाका हामी न बतलाया होता तो मुझे इन दोनोंमें किसीके