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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लिए भी प्रायश्चित्त न करना पड़ता। इसलिए जबतक लोगों की भीड़ मेरी ओर दौड़-दौड़कर आती रहती है तबतक मुझे अवश्य अपने कदम बहुत सावधानी से उठाने होंगे। एक बड़ी सेनाको साथ रखकर सेनापति उतनी तेजीसे कूच नहीं कर सकता जितना वह चाहता है। उसे अपनी सेनाके भिन्न-भिन्न अंगोंका खयाल रखना ही पड़ता है। मेरी स्थिति ऐसे सेनापतिकी स्थितिसे बहुत भिन्न नहीं है। यह कोई अच्छी स्थिति नहीं है, परन्तु यह है ऐसी ही। अकसर यह स्थिति ताकत देनेवाली होती है। परन्तु कभी-कभी तो यह स्पष्टतः बाधक हो जाती है। "स्वराज्य दलवालोंके साथ अभी लड़ाई करनेकी शक्तिके अभाव" से मेरा जो तात्पर्य था, शायद वह अब स्पष्ट हो गया होगा।


मैंने किसी तरह भी असहयोगकी "ध्वजाको कभी नीचा नहीं किया है"। मैंने तो उसे तनिक भी झुकायातक नहीं है, क्योंकि किसी भी असहयोगीको यह नहीं कहा गया कि वह अपने उसूलसे हटे। संसारके बड़े पैगम्बरों या धर्म-प्रचारकोंका उदाहरण पेश करनेमें सर्वदा जोखिम रहती है। इस संसारमें, "चतुर्दिक् अन्धकारके बीच", मैं प्रकाशकी ओर जानेका रास्ता टटोल रहा हूँ। अकसर मैं भूल करता हूँ और मेरे अनुमान गलत हो जाते हैं। लेकिन चूँकि इस सम्बन्धमें पैगम्बर साहबका नाम लिया गया है, इसलिए पूरी नम्रताके साथ मैं कहना चाहता हूँ कि मैं भी अपने लिए यह आशा करता हूँ कि यदि दो ही मनुष्य मेरे साथी रह जायें या कोई भी न रहे तो उस हालतमें भी मैं कच्चा नहीं निकलूँगा। ईश्वरपर ही तो मेरा कुल भरोसा है। और मैं मनुष्योंपर भी इसीलिए भरोसा रखता हूँ कि ईश्वरपर मेरा पूरा भरोसा है। यदि मुझे ईश्वरका सहारा न होता तो मैं [ शेक्सपियर द्वारा वर्णित एथेन्सके ] टिमनकी तरह मनुष्य-जातिसे घृणा करने लगता। लेकिन यदि बड़े-बड़े धर्म-प्रचारकोंके जीवनसे हम कुछ शिक्षा ग्रहण करना चाहते हैं तो हम लोगोंको यह भी याद रखना चाहिए कि हजरत मुहम्मदने उन लोगोंके साथ संधि की थी जिनसे उनका मत बहुत ही कम मिलता था और 'कुरानशरीफ' में जिनका वर्णन बहुत ही निन्दापूर्ण शब्दोंमें किया गया है। असहयोग, हिजरत, प्रतिरोध और हिंसातक भी हजरत मुहम्मदके उनके अपने जीवन-संग्रामके भिन्न-भिन्न रूप थे, जिसका सर्वस्व सत्य ही था।

ये मित्र ऐसा मानते मालूम होते हैं कि एक व्यक्तिको तो आध्यात्मिक लाभ हो सकता है पर उसके आसपासवालोंको हानि। मैं यह बात नहीं मानता। मैं अद्वैतमें विश्वास करता हूँ, मैं मनुष्यकी मूलभूत एकतामें भी और केवल मनुष्योंकी ही क्यों सभी जीवधारियोंकी एकतामें विश्वास करता हूँ। इस कारण मेरा तो ऐसा यकीन है कि एक मनुष्यके आध्यात्मिक लाभके साथ सारी दुनियाका लाभ होता है। उसी तरह एक मनुष्यके अधःपतनके साथ इस हदतक सारे संसारकी अधोगति होती है। गरज यह कि अपने प्रतिपक्षियोंकी सहायता करके मैं साथ-ही-साथ अपनी और अपने असहयोगियोंकी सहायता भी करता ही हूँ। मैंने किसी भी पक्के असहयोगीको यह नहीं कहा है कि वे व्यक्तिशः या संयुक्त रूपसे, अपनी पताका न फहरायें।