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ध्वजको झुकायातक नहीं

उलटे, मैं तो उनसे ऐसी ही उम्मीद रखता हूँ कि वे हर तरहकी दिक्कतोंके रहते हुए भी अपनी ध्वजाको पूरी ऊँचाईपर फहराते रहेंगे। परन्तु इसका यह मतलब नहीं है कि राष्ट्रका या कांग्रेसका असहयोग जारी है। यदि हम वास्तविकताकी उपेक्षा नहीं करना चाहते हैं तो हमें यह मानना होगा कि राष्ट्र या कांग्रेस जहाँतक वह राष्ट्रकी प्रतिनिधि है, असहयोगके कार्यक्रमपर अमल नहीं कर रही है। इसलिए असहयोगको कुछ व्यक्तियोंतक ही परिमित रहना पड़ेगा। असहयोगी वकील, उपाधि छोड़नेवाले, पुराने शिक्षक और असहयोगी विधान सभासद, ये सभी पूर्ण रूपसे असहयोगी रहते हुए भी कांग्रेसमें रह सकते हैं। कताई और खादीका प्रचार, उनका अपना विशेष कार्यक्रम रहेगा। इन दोनोंको अभी कांग्रेसने छोड़ा नहीं है। इस मामलेमें जहाँतक यह काम उनके विश्वाससे संगत है, स्वराज्य दलवाले अपरिवर्तनवादियोंको खूबी के साथ पूरी तरह अपना रहे हैं। अपरिवर्तनवादियोंकी तरह वे विदेशी कपड़ोंको जल्दीसे-जल्दी हटानेके लिए, सबके द्वारा कताईकी बातको आवश्यक नहीं समझते। फिर भी अपरिवर्तनवादियोंका या चाहें तो यों कहिए कि मेरा सहयोग लेनेके लिए उन्होंने यह देखकर कि सिद्धान्ततः वे कताईके खिलाफ नहीं हैं, सदस्यता की शर्तोंमें इसको शामिल करना मंजूर किया है। यहाँ यह याद रखना अच्छा होगा कि कताईको सदस्यता की शर्तों में शामिल करना एक असाधारण बात है। स्वयं उत्साही कातनेवाले होनेपर भी श्री स्टोक्सके समान सिद्धान्तवादी मनुष्य भी इसका दिलोजानसे विरोध करते हैं। हमारे कितने ही प्रख्यात देशवासी इसकी हँसी उड़ाते हैं। तब तो स्वराज्य दलवालोंका इसे स्वीकार करना कोई मामूली बात नहीं है। इसलिए यदि वे अपनी बातोंके पक्के निकलें (और इसमें सन्देह करनेका मेरे पास कोई कारण नहीं है) तो असहयोगियोंको किसी अलग संगठनकी जरूरत नहीं रह जाती। अपरि- वर्तनवादियोंको कौंसिलोंके कार्योंमें योग देनेकी आवश्यकता नहीं और उनके लिए यह उचित भी नहीं है। इसलिए कौंसिलों-सम्बन्धी कार्यक्रमका पूरा अधिकार और फलतः उसकी पूरी जिम्मेदारी स्वराज्य दलवालोंपर ही है। इसके लिए कांग्रेसके नामका व्यवहार करनेका उन्हें पूरा अधिकार होगा, पर वे उसमें अपरिवर्तनवादियोंके नामका उपयोग नहीं करेंगे। कांग्रेस अब एक संयुक्त संगठन होगा जिसकी कुछ बातोंकी जिम्मेदारी संयुक्त ही रहेगी और उसके कुछ खास-खास काम दल-विशेषको दिये जायेंगे।

यदि एकता, अछूतोद्धार और चरखा, ये इस देशकी राजनीतिके अंग हैं तो अपरिवर्तनवादियोंको जितना सत्य, जितनी अहिंसा और जितनी आध्यात्मिकता चाहिए वह सब उन्हें इनमें मिल ही जाती है। सरकारके साथ अपरिवर्तनवादीकी लड़ाईका रूप मुख्यतः यही है कि वह अपनेको शुद्ध करके अपनी शक्तिका विकास करे। लेकिन उसे अपने किसी भी कार्यसे स्वराज्यवादियोंकी शक्तिको किसी भी प्रकार आघात नहीं पहुँचाना चाहिए; बल्कि उसे तो स्वराज्यवादियोंको अपनी ही तरह ईमानदार समझना चाहिए। औरोंको हटाकर अपने ही अन्दर शुद्धताका अभिमान करनेमें अपरिवर्तनवादियोंको सबसे पीछे रहना चाहिए। यदि मान भी लिया जाये कि स्वराज्य-

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