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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसके अतिरिक्त हमें कांग्रेसके बहुसंख्यक निर्वाचकोंका ध्यान भी था। इस तथ्यको मैं जितना दुहराऊँ उतना ही कम है। यह सच है कि कांग्रेस के निर्वाचकोंने अभी तक अपनी बातका, जब उन्हें करना चाहिए था तब भी, विशेष आग्रह नहीं किया है। किन्तु मैंने यह देखा है कि नेताओंके विरोधी प्रयत्नोंके बावजूद वे कभी-कभी अपनी बातपर जोर दे सकते हैं। हम सबको इन्हीं निर्वाचकोंपर अपना प्रभाव डालना हैं और इन्हींके प्रभावमें रहकर काम करना है। मेरी रायमें समझौतेके उपाय ढूँढ़नेमें यदि प्रत्येक दल मिलकर काम करना चाहता है तो उसे अपनी माँग उतनी ही रखनी चाहिए जिससे उसकी अन्तरात्माको सन्तोष-भर हो जाये, उससे तनिक भी अधिक नहीं।

आखिर बिना किसी कारणके कोई भी असहयोग नहीं करना चाहता। स्वतन्त्रताकी तुलनामें कारागार कोई पसन्द नहीं करता। किन्तु जब स्वतन्त्रता जोखिममें हो तब असहयोग कर्तव्य बन सकता है और कारागार महल। जो लोग हर हालतमें असहयोगसे बचना चाहते हैं उन सबका यह कर्त्तव्य है कि वे असहयोगियोंके लिए असहयोगका आश्रय लेना अनावश्यक बना दें। इसका एक सर्वोत्तम उपाय यह है कि सब दल एक हो जायें, सब दल स्वराज्यकी एक मान्य योजना तैयार करें और साथ ही यदि सम्भव हो तो उस योजनाको अमलमें लानेका कोई स्वीकार्य तरीका भी ढूँढ निकालें।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ४-१२-१९२४

३३२. राजद्रोहात्मक किसे कहें?

अध्यापक रामदास गौड़की पोथियोंमें जो-कुछ अन्य प्रचलित पुस्तकोंमें है, उसके सिवा और कुछ नहीं है, यह मानकर भी इलाहाबाद हाईकोर्टने उन्हें राजद्रोहात्मक कहा है। मुद्दईको उनसे ३००) खर्च भी दिलाया जायेगा। वे पोथियाँ छपनेके ३ वर्ष बाद जब्त की गई हैं। मैं इतना तो मानता हूँ कि केवल समय बीत जानेके कारण सदोष वस्तु निर्दोष नहीं हो जाती है। किन्तु यह पूछना भी तो अनुचित नहीं है कि सरकारने इस दोषको इतने दिनोंतक क्यों चलने दिया? यह अनुमान अनुचित नहीं है कि सरकारने ऐसा समय चुना है जब कि असहयोग उतारपर है। अब विचारणीय प्रश्न यह है कि इस स्थितिमें अध्यापक रामदास गौड़ व वे माता-पिता या पाठशालाएँ जो उन पोथियोंका व्यवहार करते हैं, क्या करें? इस प्रश्नका उत्तर देना आसान नहीं है। हम लोग असहयोग मुल्तवी करने जा रहे हैं और इस कारण सविनय अवज्ञा भी। इसलिए अब इस तरहके काम कांग्रेससे नैतिक समर्थन नहीं पा सकते। प्रत्येक व्यक्ति या संस्था अपने दायित्वपर ही कुछ कर सकती है। फैसलेमें पोथियोंके उद्धृत अंशोंके तीन भाग किये गये हैं: