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राजद्रोहात्मक किसे कहें?

(१) वे अंश जो सरकारके प्रति द्वेष उत्पन्न करानेवाले कहे जाते हैं।

(२) वे अंश जो पश्चिमी सभ्यता और इसलिए यूरोपीयोंके प्रति द्वेष उत्पन्न करानेवाले कहे जाते हैं।

(३) वे अंश जो भिन्न-भिन्न धर्मावलम्बी मनुष्योंके प्रति द्वेष उत्पन्न करानेवाले कहे जाते हैं।

प्रथम तो मैं यह कहूँगा कि पूर्वापर सम्बन्ध तोड़कर जहाँ-तहाँसे उद्धृत अंशोंके सहारे कोई भी पुस्तक आपत्तिजनक ठहराई जा सकती है। जहाँतक मुझे मालूम है जजोंको इसके सिवा और प्रकारका मसाला नहीं मिला था। दूसरे यों तो प्रायः प्रत्येक भारतीय समाचारपत्र राजद्रोही कहा जा सकता है; क्योंकि वे कानूनके द्वारा स्थापित सरकारके प्रति (पद्धतिके प्रति, मनुष्योंके प्रति नहीं) अप्रीतिका प्रचार करते हैं। प्रायः प्रत्येक भारतवासीने इस सरकारके खिलाफ अपनी आवाज उठाई है और वे या तो उसे सुधारना चाहते हैं या मिटा ही देना चाहते हैं। जहाँतक पश्चिमी सभ्यताका सम्बन्ध है, हिन्दू-धर्मग्रन्थोंमें से ऐसे अनेक वचन पेश किये जा सकते हैं। जिनमें आधुनिक जीवन-पद्धतिकी अत्यन्त कठोर आलोचना और निन्दा की गई है। मेरी पुस्तिका, जिसमेंसे पश्चिमी सभ्यता-सम्बन्धी अंश उद्धृत किये गये हैं, लड़कोंको बेधड़क दी जाती है। सम्भव है कि मुझसे निन्दा करनेमें भूल हुई हो। किन्तु मेरी यह पुस्तिका जातिके प्रति घृणाका प्रचार करनेके लिए नहीं, बल्कि प्राणिमात्रके प्रति प्रेम पैदा करनेके लिए लिखी गई थी। मैं ऐसा एक भी उदाहरण नहीं जानता कि एक भी आदमीपर उसके पढ़नेसे बुरा असर हुआ हो। देश, विदेश सभी जगह बहुत-सी भाषाओंमें उसके अनुवाद हुए हैं। बम्बई सरकारने एक बार उसे जब्त कर लिया था।[१] अब वह जब्ती, व्यवहारमें हट गई है। यह तो आश्चर्यजनक है कि अध्यापक रामदास गौड़को तो सजा हो और मैं अछूता ही छोड़ दिया जाऊँ। तीसरे आरोपके अर्थात् विभिन्न धर्मालम्बियोंके बीच विद्वेष पैदा करनेके समर्थनमें तो केवल एक ही उद्धरण पेश किया है। मुझे उसके सन्दर्भका पता नहीं। लेकिन यह तो स्पष्ट है कि केवल उस एक अंशके लिए पोथियाँ जब्त नहीं हुई हैं। मैं जानता हूँ कि अध्यापक महोदयकी अन्तरात्मा शुद्ध है। उनका हेतु किसी भी व्यक्तिके प्रति द्वेषकी भावना उत्पन्न कराना नहीं है । मैं यह भी जानता हूँ कि पुस्तकोंकी बिक्रीसे उन्होंने कोई लाभ नहीं उठाया है। यदि मैं उनके स्थानमें होता तो पुस्तकोंकी बिक्री यथावत् जारी रहने देता। सरकारने उनकी तमाम बची हुई प्रतियाँ तो अवश्य ही जब्त कर ली होंगी। किन्तु जहाँ वे पोथियाँ पहलेसे ही पढ़ाई जा रही हैं, वहाँ मैं तो उन्हें वैसे ही पढ़ाने देता, जबतक कि लड़कोंके माता-पिता या पाठशालाओंके संचालक कोई दूसरा निश्चय न जाहिर करते।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ४-१२-१९२४
  1. यह संकेत हिन्द स्वराज्यकी ओर है। देखिए खण्ड १०, पृष्ठ १९४-९५।