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३३७. पत्र: सी० एफ० एन्ड्रयूजको

५ दिसम्बर, १९२४

परम प्रिय चार्ली,

मैंने महादेवसे तुम्हें यह कह देनेको कहा था कि तुम जिस तरह 'यंग इंडिया' के लिए लिख रहे हो, उस तरह न लिखो। मैं देवदासके पास रखी एक लेखकी पाण्डुलिपि देख गया हूँ। लेख बहुत प्रयत्नसे लिखा गया है और मैं देख सकता हूँ कि तुमको उसके लिए कितनी मेहनत करनी पड़ी होगी और जिस बातसे मुझे चिन्ता होती है वह यह है कि तुम इसे अपना अपरिहार्य कर्तव्य मानते हो। मैं हर हफ्ते नये लेख लिखता हूँ, हालाँकि अभी लिखा हुआ इतना पड़ा है। इसलिए तुम चिन्ता न करो। तुम इस दायित्वसे मुक्त हो। लेकिन तुमको जब प्रेरणा होगी तब तो लिखोगे ही। मैंने साबरमतीमें तुम्हारे दो-तीन लेख नष्ट कर दिये थे। अब मुझे याद नहीं कि वे कौन-से लेख थे। मैंने अभी-अभी हैरी थुकू और 'अस्पृश्यता' शीर्षकके दो लेखोंको अपनी टिप्पणियाँ देकर (ऐसा कह सकूँ तो) 'पास' कर दिया है। मेरे पास अभी दो अंकोंके लिए पर्याप्त सामग्री है। मैंने तुम्हारी मिस्र-सम्बन्धी टिप्पणी नष्ट कर दी है, क्योंकि उसमें विषयके साथ न्याय नहीं हो पाया था। ब्रिटेनका अल्टीमेटम मुझे बहुत बर्बरतापूर्ण लगा था। लेकिन मुझे मिस्र के बारेमें कोई जानकारी नहीं है, इसलिए मैं इस विषयपर कलम नहीं उठाऊँगा। उसके बारेमें मुहम्मद अलीने जो कुछ लिखा है, वह पढ़ो और बताओ कि कैसा लगा।

यह पत्र मैं लाहौरसे लिख रहा हूँ। मैं १४ तारीखको या उससे पहले आश्रम पहुँचने और वहाँ चार दिन रह सकनेकी आशा करता हूँ। क्या तुम बेलगाँव तार दे सकते हो? अगर ठीक न समझो तो तार भेजने की जरूरत नहीं।

सप्रेम।

तुम्हारा,
मोहन

अंग्रेजी पत्र (जी० एन० २६१५) की फोटो-नकलसे।