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भाषण: अमृतसरकी सार्वजनिक सभामें

हो--कोई चीज आपको जनतासे नहीं छिपानी चाहिए। सत्याग्रहकी एक यही शर्त है कि हर काम पूरी सचाईसे किया जाये। मैंने मुसलमानोंको हिन्दुओंके और हिन्दुओंको मुसलमानोंके खिलाफ और सिखोंको दूसरोंके तथा दूसरोंको सिखोंके खिलाफ शिकायतें करते सुना है। हिन्दू और मुसलमान और एक ही समाजके सम्प्रदायतक एक-दूसरेके खिलाफ लड़ रहे हैं। सत्याग्रहको लड़ाईमें आपको सभी मतभेद दूर कर देने चाहिए; आपको अवसरका ध्यान रखना चाहिए। वही अच्छा सैनिक या सेनापति होता है जो अपने उद्देश्यको सिद्धिके लिए उत्तम अवसरका ध्यान रखता है। अगर जरूरत पड़े तो आपको समय देखकर दूसरेके सामने सिरतक झुका देना चाहिए। सर मेलकम हेली आपके दूसरे सम्प्रदायोंको एक करके आपको कुचलना चाहते हैं, यद्यपि उन्होंने अपने भाषणोंमें कहा है कि वे सिखोंको कमजोर नहीं करना चाहते और साथ ही वे गुरुद्वारोंके सुधारके भी पक्षमें हैं; लेकिन आप जानते हैं कि उनके दिलमें क्या है।

महात्माजीने अन्य विषयोंकी चर्चा करते हुए कहा: मेरा असहयोगका सिद्धान्त तभी खत्म होगा जब भारत आजाद हो जायेगा। उन्होंने अकालियोंसे अनुरोध किया कि वे सत्यपर अटल रहें और इसी आदर्शको लेकर अपनी लड़ाई चलायें।

[ अंग्रेजीसे ]
ट्रिब्यून, ७-१२-१९२४

३३९. भाषण: अमृतसरको सार्वजनिक सभामें[१]

५ दिसम्बर, १९२४

महात्मा गांधीने दोनों मानपत्रोंका एक साथ उत्तर देते हुए कहा कि इन मानपत्रोंको स्वीकार करनेमें मुझे काफी झिझक महसूस हुई है और उसका कारण अब मुझे इसी सभामें नजर आ गया है। जब मैं पहली बार अमृतसर आया था और देशका दौरा किया था तब मैंने लोगोंको महात्मा गांधीकी जय के नारे लगाते सुना था। इन नारोंको सुनकर मुझे खुशी नहीं होती, क्योंकि मैं देखता हूँ लोग मेरे नामपर तरह-तरहके अनुचित काम करने लगे हैं। मैं आप लोगोंसे अनुरोध करता हूँ कि आप मेरा नाम भूल जायें और हिन्दू-मुसलमानकी जयके नारे लगायें। महात्माजीके ऐसा कहनेपर श्रोताओंने यह नारा लगाया। इसके बाद उन्होंने कहा कि अच्छा तो यह हो कि लोग चरखेकी जयका नारा लगायें, क्योंकि मेरी जय कहनेसे कोई फायदा

  1. जलियाँवाला बागमें डा० सन्तराम सेठकी अध्यक्षतामें आयोजित सभा। गांधीजीके स्वागतमें मुस्लिम लीग, खिलाफत समिति, स्थानीय कांग्रेस कमेटी, केन्द्रीय सिख लोग, हिन्दू सभा, नागरिक संघ, महाराष्ट्र समाज और गुजरात मित्र-मण्डलने सम्मिलित रूपसे मानपत्र दिया था। इसके अतिरिक्त एक और मानपत्र जेलसे लौटे अमृतसरके स्वयंसेवकों और नवयुवकोंने दिया था।