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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

होनेवाला नहीं है। मैं तो ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि अगर वह मुझे जिन्दा रखना चाहता है तो वह मेरा उपयोग किसी अच्छे और पुनीत कामके लिए करे। मैं प्रभुसे यह भी प्रार्थना करता हूँ कि हिन्दू और मुसलमान अपने मतभेदोंको भुला दें। वे अपने-अपने धर्मपर दृढ़ रहते हुए भी एक-दूसरेके धर्मके प्रति सारी कटुता छोड़ सकते हैं। हिन्दू लोग 'कुरान' के खिलाफ एक शब्द बोले बिना भी शुद्धिका प्रचार कर सकते हैं। एक मानपत्रमें इन झगड़ोंको जिम्मेदारी नेताओंपर डाली गई है। बात सही है, क्योंकि लड़नेवाले गुण्डे नहीं हैं। मैं साबित कर सकता हूँ कि इस गड़बड़ीके लिए मैं जिम्मेदार हूँ और नेता लोग जिम्मेदार हैं। लेकिन मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि आप नेताओंके बहकावेमें न आयें, क्योंकि जनताने ही तो उनको अपना नेता बनाया है।

इसके बाद महात्मा गांधीने कहा कि मुझसे कहा गया है कि मैं यहाँ कुछ दिन रुकूँ और इन मतभेदोंको दूर कराऊँ। पर इस कामको तो यहाँके लोग ही ज्यादा अच्छी तरह कर सकते हैं। मैं इसे नहीं कर पाऊँगा और न मेरे पास यहाँ रुकनके लिए समय ही है। यदि इस तरहकी गड़बड़ीसे कोई स्थान बचा रहना चाहिए तो वह अमृतसर ही है। मैं मानता हूँ कि मेरा सारा असर खत्म हो गया है। अब तो आपको ही यह काम करना है। हिन्दू और मुसलमान दोनों ही अब मेरी नहीं सुनते। मुझपर इलजाम लगाया जाता है कि मैं मुसलमानोंके साथ अनुचित पक्षपात करता हूँ। परन्तु हिन्दू यह नहीं जानते कि उनको डाँटने-फटकारनेका तो मुझे पूरा हक है, जबकि मुसलमानोंके धर्मकी पूरी जानकारी न होनेके कारण मैं उनके खिलाफ कुछ नहीं कह सकता, क्योंकि ऐसा करना किसी प्रकार हानिकर हो सकता है और उससे उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस लग सकती है। लेकिन खुद एक हिन्दू और कट्टर सनातनी होने के नाते, मैं अपने धर्मको समझता हूँ और उसके खिलाफ बखूबी बोल सकता हूँ। मुझपर इलजाम लगाया गया है कि मैं आर्य समाजकी नुक्ताचीनी करता हूँ और मैं रावलपिंडीके सनातन धर्म सम्मेलनमें तो शामिल नहीं हुआ, परन्तु खिलाफत सम्मेलन में शरीक होने आ गया हूँ। मैं मानता हूँ कि मैं अपने धर्मके प्रति सच्चा रहते हुए भी अन्य धर्मोके प्रति अपने आदर-भावके कारण उनकी तरफदारी करता हूँ। मेरा आपसे अनुरोध है कि आप सत्यका पालन करें। असत्यको मैं हिंसा मानता हूँ। यदि मैं असत्य भाषण करूँ तो मुझे जानसे मार देना चाहिए। हिन्दू लोग पूछते हैं कि अगर काबुलियोंने भारतपर हमला कर दिया तो हम क्या करेंगे। मेरी यही सलाह है कि आप काबुलियोंसे भय न खाइए, क्योंकि वे आपके भाई हैं। आपको काबुलियोंकी इज्जत करनी चाहिए और उनके आगे सिर झुकाना चाहिए। आपको संयम और सहिष्णुतासे काम लेना चाहिए।

[ अंग्रेजीसे ]
ट्रिब्यून, ७-१२-१९२४