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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बताया कि कुछ स्कूली बच्चोंके माता-पिता अपने बच्चोंको शारीरिक श्रमकी शिक्षा देनेपर आपत्ति करते हैं। वे कहते हैं कि हमारे बच्चोंको अपने आगामी जीवनमें श्रम तो करना नहीं है। हिन्दू और मुसलमान भी सरकारी नौकरियोंके पीछे इसलिए झगड़ रहे हैं कि वे शारीरिक श्रम नहीं करना चाहते। मैं इसे हराम समझता हूँ।

आपको जो शिक्षा मिल रही है, वह सिर्फ दिमागकी शिक्षा है, हृदयकी नहीं। हृदयकी शिक्षाका मतलब है धार्मिक शिक्षा और धार्मिक शिक्षाका अर्थ केवल शास्त्रोंका पठन-पाठन नहीं है। उसका अर्थ है ईश्वरकी वास्तविक अनुभूति और ईश्वरके अतिरिक्त अन्य किसीके सामने भी भयसे न झुकना। यदि कोई ऐसी सच्ची शिक्षा, अर्थात् हृदयकी शिक्षा एक बार प्राप्त कर ले तो उसके हृदयमें किसी मनुष्यका या शक्तिशाली सरकारका भी भय नहीं रह जायेगा, क्योंकि तब उसको अनुभूति हो जायेगी कि ईश्वर उसके साथ है। उन्होंने विद्यार्थियोंसे पूछा, क्या आपको ऐसी शिक्षा मिली है? क्या आप छोटेसे-छोटा काम करनेके लिए भी तैयार हैं? अगर आप मानते हैं कि देशकी स्वतन्त्रताके लिए चरखा चलाना अत्यावश्यक है तो क्या आप यज्ञ समझकर प्रतिदिन चरखा चलाते हैं? यदि ऐसा हो तभी कहा जा सकता है कि आपको सच्ची शिक्षा मिली है।

उन्होंने आगे कहा कि मुझे विश्वास है कि यदि भारतका प्रत्येक पुत्र और भारतकी प्रत्येक पुत्री प्रति-दिन कमसे-कम आधा घंटा भी सूत कातने लगे और उसे कपड़े तैयार करने और गरीबोंमें बाँटनेके लिए कांग्रेसको देने लगे तो हम अपने देशको स्वतन्त्र करा सकते हैं। परन्तु हमारे अन्दर अभीतक ऐसी राष्ट्रीय चेतना पैदा नहीं हुई है। यदि आप अपने देशके भूखे और नंगे लोगोंके सबसे निचले वर्गके लिए स्वराज्य लेना चाहते हैं तो आपको सूत कातना शुरू कर देना चाहिए। मैं आपको शेक्सपियर या मिल्टनकी रचनाएँ पढ़नेसे या वैदिक ऋचाओंका पाठ करने से या 'कुरान' का अध्ययन करनेसे नहीं रोकता; लेकिन जैसा कि 'कुरान' में हजरत मुहम्मदने कहा है, निचले वर्गके लोगोंकी उपेक्षा करनेवाले ईश्वरसे बहुत दूर हैं। और यही बात राष्ट्रीय शिक्षाके लिए अत्यावश्यक है। मेरी समझमें तो यही सच्ची शिक्षा है।

इस समय मैंने राष्ट्रीय कार्यक्रमके रूपमें असहयोगको स्थगित करनेकी जो सलाह दी है, उसका कारण यह नहीं है कि मैं शिक्षाकी इस दूषित पद्धतिको बरकरार रखना चाहता हूँ। महाकवि तुलसीदासने मुझे सीख दी है कि धर्म और अधर्मके बीच किसी भी तरहका सौहार्द, स्नेह या एका नहीं हो सकता। इसलिए जबतक मेरा विश्वास है कि यह सरकार शैतानी सरकार है और यह कमजोर जातियोंके अहं- कारपूर्ण शोषणपर खड़ी है, तबतक इससे असहयोग करना मेरा कर्त्तव्य है और मैं इस मार्गपर दृढ़ रहूँगा, चाहे मुझे इसपर अकेले ही चलना पड़े। यहाँ यदि कोई अराजकतावादी हों तो मैं उन्हें बतला देना चाहता हूँ कि मैं अहिंसापूर्ण असहयोग