पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/४७०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

३४२. तेरह आदेश

ईसाई धर्ममें दस पालनीय आदेश बताये गये हैं। भाई अमृतलाल ठक्करको मैंने उनके प्रेमके कारण अन्त्यजोंका धर्म-गुरु कहा है। उनकी सेवावृत्तिकी कोई सीमा नहीं है। अब उन्होंने भीलोंके गुरुका पद सँभाला है और अनुभवसे जो उन्हें जरूरी लगा है उसे उन्होंने, आदेश के रूप में कहिए या उपदेशके रूप में, बड़े-बड़े सुन्दर अक्षरोंमें छपवाया है। ये आदेश भील भाइयोंकी भाषामें ही छपवाये गये हैं। यहाँ सब आदेश उद्धृत करनेकी तो जरूरत नहीं है, किन्तु उनमें से कुछ आदेश उद्धृत करता हूँ उदाहरण के तौरपर पहला आदेश यह है:

हँड़िया[१]मत पिओ। हँड़िया पीनेसे बच्चे ठण्ड और भूखों मरेंगे।

आदेश३: नित्य स्नान करो, इससे तुम्हारा जी हल्का रहेगा, तुम्हें दाद-खुजली नहीं होगी तथा तुमपर बाबादेवकी कृपा रहेगी।

लगता है भील परमेश्वरको बाबादेव कहते हैं।

आदेश ५: पानी छाना हुआ और ताजा पीओ। बाबादेव तुम्हें नारू नहीं होने देंगे।

आदेश ६: [ लड़कीके विवाहमें ] लड़कीकी कीमत न लो। लड़की की कीमत लेनेसे तुम्हें दुःख उठाना पड़ेगा।

आदेश ९: चोरी-चकारी न करो। नहीं तो बाबादेव अन्न-संकट पैदा कर देंगे।

तेरहवाँ और अन्तिम आदेश यह है:

प्रतिदिन सूर्यास्त होनेपर बाबारामका स्मरण करो। बाबारामके समान अन्य कोई नहीं है। गुरुजीकी शपथ।

इनमें से बहुतसे आदेश तो ऐसे हैं जो हमपर भी लागू होते हैं। इन आदेशोंके सम्बन्धमें ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्रत्येक आदेशका पालन करनेके लिए संक्षेपमें कोई-न-कोई सुन्दर कारण दिया गया है।

भगवान करे, भाई अमृतलाल ठक्करकी सेवा फलीभूत हो और भील भाइयोंका भविष्य उज्ज्वल हो।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ७-१२-१९२४
  1. मूलमें 'हरो' है। आदिवासियों द्वारा प्रयुक्त और तैयार की जानेवाली एक प्रकारकी शराब।